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________________ कॉस्मिक अनकांशस में उतर जाते हैं । तब हम ब्रह्म - अचेतन में उतर जाते हैं, जिसको इस मुल्क में प्रकृति कहा गया है। प्रकृति शब्द को समझ लेना उचित होगा । प्रकृति का मतलब होता है, जब सब बना उसके पहले भी जो था । कृति के भी जो पहले है - प्री-क्रिएशन । अगर अंग्रेजी में बनायें शब्द तो बनेगा प्री-क्रिएशन | सृष्टि के पहले से भी जो है । जिससे सब पैदा हुआ। जो पैदा होने के पहले भी था, उसको कहते हैं प्रकृति ! वह जो कॉस्मिक अनकांशस है, वह प्रकृति है । उससे ही सब आया। अब इसको ऐसा समझ लें। चेतन मन मेरा है, अचेतन मन भी मेरा है, लेकिन कलेक्टिव अनकांशस 'हमारा' है, वह 'मेरा' नहीं है। वह आपका नहीं है, वह हमारा है । कॉस्मिक अनकांशस हमारा भी नहीं है, सबका है । उसमें पत्थर भी सम्मिलित है। पक्षी भी सम्मिलित हैं। नदी भी सम्मिलित है। पहाड़ भी सम्मिलित हैं । वह प्रकृति है। वहां जो उतर ये उसके आगे उतरने को नहीं रह जाता। वह बॉटमलेस एबिस है। उसके नीचे फिर उतरने का कोई उपाय नहीं, वह शून्य खाई है। इसमें उतरने की प्रक्रिया है - अप्रमाद । जहां आप हैं वहीं जागना शुरू करें। जिस दिन आप वहां जाग जायेंगे, आपको नीचे के दरवाजे की कुंजी मिल जायेगी । फिर वहां जागना शुरू करें। और नीचे की कुंजी मिल जायेगी। और एक दूसरी प्रक्रिया पूरे समय साथ चलेगी। जब तक आप चेतन में हैं, तब तक आप सुपर-कांशस में, अति- चेतन में नहीं जा सकते, ऊपर नहीं बढ़ सकते। आपकी जड़ों को अनकांशस में उतरना पड़ेगा। जिस दिन आपकी जड़ें अचेतन में उतर जायेंगी उसी दिन आपकी शाखाएं सुपर-कांशस में फैल जायेंगी । ऊपर उठ जायेंगी । 1 फ्रायड और जुंग, सुपर-कांशस में नहीं पहुंच पाते, क्योंकि वे अनुमान कर रहे हैं। इसलिए वे अनकांशस, कलेक्टिव अनकांशस, इनकी तो बात करते हैं नीचे की, लेकिन ऊपर की उनके पास कोई कल्पना नहीं है। लेकिन यह जगत सदा एक संतुलन है। यहां जितने नीचे जाने का उपाय है, उतने ही ऊपर जाने का उपाय है। असल में नीचे का अस्तित्व ही नहीं हो सकता, अगर ऊपर का अस्तित्व न हो। ऊपर का और नीचे का अस्तित्व एक साथ ही हो सकता है। अगर बायां न हो तो दायां नहीं हो सकता है, कि हो सकता है? अगर दायां है तो बायां का अस्तित्व जरूर होगा, चाहे पता हो या न हो। क्या नीचे का अस्तित्व हो सकता है ऊपर के बिना ? फिर उसे नीचे कैसे कहियेगा ? नीचे का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता ऊपर के बिना। क्या दुख का अस्तित्व हो सकता है सुख के बिना ? तो फिर उसे दुख कैसे कहियेगा ? दुख का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता सुख के बिना । जिंदगी सदा ही दोहरी है । जितना ऊपर है, उतना नीचे है। जो जो नीचे है वही वही ऊपर भी है। फर्क इतना ही है, नीचे अंडरग्राउंड है, अंधेरे में है; ऊपर खुले आकाश में, सूरज की रोशनी में है । जितना नीचे उतरेंगे उतना ही अंधेरा बढ़ता चला जायेगा । और कॉस्मिक अनकांशस है, प्रकृति है, वह पूर्ण अंधकार है, विराट अंधकार है, अंधकार ही अंधकार है। जितना ऊपर बढ़ियेगा उतना ही प्रकाश बढ़ता जायेगा और वह जो कॉस्मिक कांशस है, ब्रह्म Jain Education International For Personal & Private Use Only अप्रमाद 105 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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