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पिकासो की पेंटिंग, जो आदमी फ्रेंच नहीं जानता है वह समझ सकता है। कोई जरूरत नहीं है... क्योंकि यह सब के सब हमारे कलेक्टिव अनकांशस से पैदा होने वाली चीजें हैं। यह हम सब जानते ही हैं। इसके लिए एक-दूसरे की भाषा, एक-दूसरे की संस्कृति, एक-दूसरे की सभ्यता, एक-दूसरे के सिद्धांतों से परिचित होने की कोई जरूरत नहीं है।
इसलिए दुनिया के सारे धर्मों के जो प्रतीक हैं, वह सब समान हैं। कई बात में तो इतनी हैरानी की समानता है कि कहना मुश्किल है। जैसे 'ओम' की ध्वनि है वह कलेक्टिव अनकांशस से पैदा होती है। इसलिए 'ओम' की ध्वनि सारी दुनिया के धर्मों में है, सिर्फ थोड़े बहुत हेर-फेर हैं, वह समझने के हेर-फेर हैं। हिंदुओं ने उसे पकड़ा है 'ओम' की तरह। यह हमारे पकड़ने की बात है, क्योंकि पकड़ेगा तो हमारा चेतन मन । तो हमने 'ओम' की तरह पकड़ा है। यहूदियों ने, ईसाइयों ने, 'ओमीन' की तरह पकड़ा है। वह 'ओम' का ही उनका रूपांतरण है। इसलिए आज भी प्रार्थना के बाद वह कहेंगे, आमीन। वह ओमीन; 'ओम' ओमीन उससे निर्मित हुआ है । अंग्रेजी के शब्द हैं, ओमनीसायंट, ओमनीप्रजेंट, वह सब ‘ओम' से बने हुए हैं। लेकिन वह निकले हैं बहुत गहरे से । वह संस्कृत से नहीं गये हैं। जैसा कि संस्कृत के ज्ञाताओं को खयाल होता है कि दुनिया की सारी भाषाएं संस्कृत से पैदा हो गयीं। ऐसा नहीं है। दुनिया की भाषाओं में जो समानता है वह कलेक्टिव अनकांशस की समानता है, दुनिया की भाषाएं किसी एक भाषा से पैदा नहीं हो गयीं ।
हमारा एक तल है मन का जो हम सबका इकट्ठा है, जैसे सागर के ऊपर लहरें अलगअलग हैं; लेकिन नीचे सागर इकट्ठा है। ऐसे लहरों की तरह हम अलग-अलग हैं, लेकिन और गहरे, और गहरे सब इकट्ठा है। वह जो इकट्ठापन है उसकी अपनी क्रियाएं हैं, जिसको कबीर ने अनाहत नाद कहा है। हम एक तरह का नाद जानते हैं, चोट से पैदा होने वाला नाद । अगर मैं ताली बजाऊं तो एक नाद पैदा होगा, लेकिन दो तालियां टकरायेंगी तब | अगर मैं तबले पर चोट मारूं तो आवाज गूंजेगी, लेकिन चोट मारूंगा तब। इसको कहेंगे, आहत नाद । चोट से पैदा हुआ, आहत, चोट खाकर पैदा हुई ध्वनि । कलेक्टिव अनकांशस में ऐसी ध्वनियां हैं, जहां चोट नहीं होती और ध्वनियां हैं। इसलिए उनको अनाहत नाद कहा है। बिना चोट किये पैदा हुई ध्वनियां, एक हाथ से बजाई गयी ताली ।
झेन फकीर जापान में अपने साधक से कहता है कि एक हाथ से अगर ताली बजाई जाये तो कैसे बजेगी ? इसका पता लगाकर आओ। बड़ा मुश्किल है। एक हाथ से ताली कहीं बज सकती है? एक हाथ से ताली कैसे बज सकती है? कभी वह टेबल पर बजाता है, कभी दीवाल पर बजाता है। और गुरु को आकर कहता है कि मैंने बजाई एक हाथ की ताली । और दीवाल पर बजा कर बताता है। गुरु कहता है, दीवाल दूसरा हाथ बन गयी, नहीं चलेगी । एक हाथ से ताली कैसे बजाई जा सकती है, उसका पता लगाकर आओ। वह तब तक पता नहीं लगा सकता जब तक कि वह अनाहत नाद में न उतर जाये । वह उसी में उतारने के लिए कह रहा है, एक हाथ की ताली कैसे बजती है, उसको खोजो ।
कलेक्टिव अनकांशस की जो क्रियाएं हैं अगर हम उनके प्रति जाग जायें तो हम
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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