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जैसा मैंने आप से कहा कि चेतन मन की क्रियाओं के प्रति जागें तो अचेतन मन में प्रवेश हो जायेगा, फिर अचेतन मन की क्रियाओं के प्रति जागें तो समष्टि अचेतन, कलेक्टिव अनकांशस में प्रवेश हो जायेगा। अचेतन मन की क्रिया है स्वप्न। स्वप्न के प्रति आप जब जागेंगे, तब आप अचानक पायेंगे एक दरवाजा नीचे और खुल गया जो कलेक्टिव अनकांशस का दरवाजा है। वह मेरा अचेतन नहीं है, हम सबका अचेतन है। उस समष्टिगत अचेतन की अपनी क्रियाएं हैं, जिनको धर्मों ने बड़ा महत्व दिया है। बड़े अनुभव हैं, उस अचेतन मन के बड़े गहरे अनुभव हैं, जिनको जुंग ने आर्च-टाइप कहा है, जिनको उसने कहा है धर्म-प्रतीक। उस गहरे अचेतन में, कहें समष्टि अचेतन में ही दुनिया की सारी मायथॉलोजी पैदा हुई। सृष्टि का जन्म, प्रलय की संभावना, परमात्मा के रूप, रंग, आकार, नाद, वे सब उसी में पैदा हुए। वे उसी की क्रियाएं हैं।
तो जो व्यक्ति स्वप्न में जाग जायेगा वह समष्टिगत अचेतन में प्रवेश करेगा और समष्टिगत अचेतन की अपनी क्रियाएं हैं। जिनको लोग धार्मिक अनुभव कहते हैं वे भी धार्मिक अनुभव नहीं हैं, वे भी मानसिक अनुभव हैं समष्टिगत अचेतन के। रंगों का विस्तार, प्रकाशों का उदभव, अभूत-पूर्व सुगंधे, अभूतपूर्व ध्वनियां, वे सब वहां पैदा होंगी। सृष्टि के जन्म और मरण को भी वहां देखा जा सकता है। उस क्षण को भी देखा जा सकता है जब पृथ्वी पैदा हुई और उस क्षण को भी देखा जा सकता है जब पृथ्वी अस्त हो जायेगी। वहीं से दुनिया की सारी मिथ्स ऑफ क्रियेशन पैदा हुई।
इसलिए बड़े मजे की बात है कि दुनिया की सृष्टि के जितने भी सिद्धांत पैदा हुए वह सब समान हैं, एक से हैं। चाहे ईसाई हों या मुसलमान हों, चाहे हिंदू हों, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ा, शब्दों के फर्क पड़े। उसी क्षण में उस चेतना की, उस अवस्था में ही बहुत-सी बातें जानी गयीं जो सारी दुनिया में समान हैं।
जैसे सारी दुनिया में यह एक खयाल है कि कभी कोई एक महाप्रलय आया। ईसाइयों को भी खयाल है कि कभी कोई एक महाप्रलय आया। हिंदुओं को भी खयाल है कि कभी कोई एक महाप्रलय हुआ। सारे जगत के आदिवासियों के पास भी जो कथाएं हैं उनको भी खयाल है कि कभी कोई महाप्रलय हुआ। और बड़े मजे की बात है, इन सबके बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं रहा। इनके बीच कोई संवाद नहीं रहा। यह संवाद तो अभी पैदा हुआ। लेकिन इनकी कथाएं तो हजारों-लाखों साल पुरानी हैं। जब ये एक दूसरे से बिलकुल असंबंधित थे। तब भी इनकी कथाएं एक हैं। क्या मामला है? एक ही मामला है। इनका जो कलेक्टिव अनकांशस है, वह एक है हम सबका। इसलिए बहुत गहरे में हम सब एक हैं। इसलिए जो चीजें बहुत गहरे से संबंधित हैं उनमें बहुत फर्क नहीं पड़ता।
जैसे नृत्य कलेक्टिव अनकांशस से पैदा होता है। इसलिए नृत्य को समझने के लिए दूसरे की भाषा जाननी जरूरी नहीं है। एक अंग्रेज नाचता हो तो एक चीनी समझ सकता है। अंग्रेजी समझना जरूरी नहीं है। एक हिंदू नाचता हो तो मुसलमान समझ सकता है।
चित्र है, पेंटिंग है, पेंटिंग के लिए कोई जरूरत नहीं है, किसी की भी भाषा समझने की।
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