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________________ तर्क है, पूरी तरह सही है। दोनों तर्कयुक्त बातें हैं। लेकिन मेरा तर्क अस्तित्व के निकट है, आपका तर्क सिर्फ विचार का तर्क है। आप विचार में बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि बिना तैरना सीखे मैं पानी में कैसे उतरूं! लेकिन आपको कुछ पता नहीं है कि तैरना सीखने के लिए भी पानी में उतरना पड़ता है। और पहली बार जब कोई पानी में उतरता है तो बिना तैरना सीखे ही उतरता है। असल में बिना सीखे, तैरने के लिए उतर जाने से ही सीखने की शुरुआत होती है, तैरने की शुरुआत होती है। हां, इतना है कि बहुत गहरे पानी में मत उतरें, उथले पानी में उतरें, इतने पानी में उतरें कि डूब भी न जायें और इतने पानी में उतरें कि तैर भी सकें। यहीं से शुरुआत करनी पड़ेगी। तो आपसे मैं कोई परम-जागरण की आकांक्षा नहीं रखता हूं। थोड़े से पानी में उतरना शुरू करें। जहां आप सोये हुए हैं उन छोटी-छोटी क्रियाओं में जागना शुरू करें। रास्ते पर चल रहे हैं, जाग कर भी चल सकते हैं, सो कर भी चल सकते हैं। अधिक लोग सोये हुए चलते हैं। अगर आप किनारे खड़े होकर रास्ते पर चलते लोगों को देखें तो अनेक उनमें से अपने से ही बातचीत करते हुए जाते हुए मालूम पड़ेंगे। कोई हाथ हिला रहा है, किसी को जवाब दे रहा है जो नहीं है; किसी के होंठ कंप रहे हैं, वह किसी से बात कर रहा है जो नहीं है। यह आदमी नींद में है। अगर आप सड़क के किनारे खड़े होकर घंटे भर सड़क पर चलते हुए लोगों को देखें तो आप हैरान हो जायेंगे कि इतने लोग सोये हुए चल कैसे रहे हैं? चलना सिर्फ हैबिट से हो रहा है। चलने के लिए जागने की बहुत जरूरत नहीं है। कभी-कभी कोई हॉर्न बजा देता है तो आदमी चौंक कर हट जाता है। जरा-सा जागता है, बाकी अपने सोये हुए चलता रहता है। ____ आप अपने घर पर जाकर नहीं पहुंचते। आपके पैर बिलकुल ही मशीन की भांति अपने घर की तरफ मुड़ जाते हैं। आप अपना दरवाजा चढ़ जाते हैं, घंटी दबा देते हैं। इस सब में कोई जागने की जरूरत नहीं होती। यह सब नींद में हो जाता है। हैबीच्युअल है, यह आदत है। साइकिल का हैंडल अपने आप घूम जाता है ठीक जगह पर। यह सब यंत्रवत हो रहा है और आप भीतर सोये रहते हैं। इसलिए हमें आदतों को दोहराने में आसानी पड़ती है, क्योंकि उनमें जागना नहीं पड़ता। नयी आदतें बनाने में कठिनाई होती है, क्योंकि उनके लिए थोड़ासा जागना पड़ेगा। फिर जब आदत बन जायेगी तब आप सो जायेंगे। इसलिए हम पुराने कामों को ही करते चले जाते हैं, बार-बार करते चले जाते हैं। क्योंकि वह नींद में चल रहा है सब। ___ एक आदमी अपनी सिगरेट मुंह में लगा लेता है। माचिस जला कर जला लेता है, पी लेता है, फेंक देता है। कोई नहीं कहेगा कि यह आदमी सोया हुआ है, क्योंकि हम कहेंगे अगर सोया हुआ होता तो हाथ जल जाता। नहीं, फिर भी सोया हुआ है। हाथ जलने के पहले जरा-सा जागेगा कि हाथ न जल जाये, सिगरेट फेंकेगा और वापस सो जायेगा, हैबिच्युअल है। आदत से पता है कि कब सिगरेट जलने के करीब आ गयी है तो हाथ फेंक देंगे। यह सब नींद में हो रहा है। 100 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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