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एक आदमी है, क्रोध करता है, गालियां बकता है। सांझ को क्षमा मांगने आता है और कहता है, माफ करें। जो मैं नहीं कहना चाहता था वह कह गया, इनस्पाइट ऑफ मी! वह कहता है, मेरे बावजूद! मैं नहीं चाहता था, और बातें हो गयीं, माफ करें।
क्या उस आदमी से पूछा जा सकता है कि तुम यदि नहीं चाहते थे तो बातें कैसे हो गयीं? क्या तुम जागे हुए थे या सोये हुए थे? __ क्या आपने क्रोध करके हर बार यह अनुभव नहीं किया है कि कुछ जो नहीं करना था वह आपने कर लिया? अगर ऐसा अनुभव किया है तो इसका मतलब है कि जो किया गया वह नींद में किया गया होगा, अन्यथा यह बात उसी वक्त पता चल सकती थी कि जो नहीं करना है वह हम कर रहे हैं।
स्वामी आनंद एक रात मेरे साथ रुके थे, तो उन्होंने एक संस्मरण मुझे सुनाया। उन्होंने कहा कि गांधीजी के बिलकुल प्राथमिक जीवन का...जब वे हिंदुस्तान आये हुए थे और किसी सभा में उन्होंने अंग्रेजों के लिए अपशब्द बोले और गालियां दीं। स्वामी आनंद ने, उन्होंने जो बोला था, उसकी पत्रों में रिपोर्ट की, अखबारों में खबर भेजी, लेकिन स्वामी आनंद ने वे शब्द निकाल दिये जो गांधीजी ने उपयोग किये थे। क्योंकि वे कठोर थे, कटु थे, विषाक्त थे, गालियां थीं, अपशब्द थे, वे अलग कर दिये। और फिर दूसरे दिन स्वामी आनंद गांधीजी के पास वह रिपोर्ट लेकर गये और कहा, मैंने उतनी चीजें अलग कर दीं। तो गांधीजी ने उनकी पीठ ठोंकी और कहा, बहुत ठीक किया जो अलग कर दिया, क्योंकि जो मुझे नहीं कहना चाहिए था वह मैंने कह दिया। स्वामी आनंद मुझसे बोले कि गांधीजी ने मेरी पीठ ठोंकी और कहा कि तुम ठीक पत्रकार हो। मैंने स्वामी आनंद से कहा, आपने गांधीजी के अहंकार की तृप्ति की और गांधीजी ने आपके अहंकार की तृप्ति कर दी। एक दूसरे की पीठ ठोंक दी। मैंने कहा, एक दूसरा प्रयोग कभी किया कि नहीं? गांधीजी ने गालियां न दी हों
और आप अखबार में जोड़ कर लिख आते कि गालियां दीं। फिर वे पीठ ठोंकते तो पता चलता! हालांकि दोनों बातें एक-सी हैं। ___ रिपोर्टिंग झूठी है। स्वामी आनंद ने जो रिपोर्ट की वह झूठ है। अगर गाली दी गयीं थीं तो दी गयीं थीं उन्हें रिपोर्ट किया जाना चाहिए। लेकिन गांधीजी ने कहा, अच्छा किया तुमने वह निकाल दिया, क्योंकि जो मुझे नहीं कहना चाहिए था वह मैंने कहा था। अगर जो नहीं कहना चाहिए था वह कहा था तो गांधीजी उस वक्त होश में थे, या बेहोश थे?
हम पश्चात्ताप इसीलिए करते हैं कि हम बेहोशी में कुछ कर जाते हैं और फिर जब थोड़ा-सा होश का क्षण आता है तो पछताते हैं। होश से जीने वाले आदमी की जिंदगी में पश्चात्ताप नहीं होता, रिपेंटेंस नहीं होता। क्योंकि वह जो कर रहा है वह पूरी तरह जान कर कर रहा है। पश्चात्ताप का कोई कारण ही नहीं है।
क्या आपकी जिंदगी में ऐसे मौके रोज नहीं आये हैं कि जब आप पछताते हैं? अगर पछताते हैं, तो समझ लेना कि आप सोये हए आदमी हैं। जो आप करते हैं क्या उसके करने का पूरा कारण आपके होश में होता है? आप किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं, अंग्रेजी में अच्छा
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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