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________________ आती है, पता नहीं नीचे भी कुछ हो। कभी-कभी नीचे से धुआं आ जाता है, कभी-कभी नीचे से आग की लपटें आ जाती हैं, और हमें लगता है कि नीचे भी जरूर कुछ होना चाहिए। लेकिन यह अनुमान है। रहते हम अपनी ही मंजिल में हैं, हम नीचे उतर कर नहीं गये, यह अनुभव नहीं है। फ्रायड ने पश्चिम में जिस अनकांशस की बात की है वह फ्रायड का अनुभव नहीं है, इनफरेंस है, अनुमान है। इसलिए पश्चिम का मनोविज्ञान अभी भी योग नहीं बन पाया। मनोविज्ञान उस दिन योग बन जायेगा जिस दिन अनुमान अनुभव बनता है। और मजे की बात है कि फ्रायड जैसा खोजी आदमी, जो कहता है कि नीचे कुछ और भी है मनुष्य के, जिसका मनुष्य को पता नहीं, वह भी इस नीचे के मन से उसी तरह प्रभावित होता है, जैसे वे लोग प्रभावित होते हैं जिन्हें पता नहीं है। अनुमान से कोई बहुत फर्क नहीं पड़ सकता। फ्रायड को उसी तरह क्रोध पकड़ लेता है जैसे उन लोगों को पकड़ता है जिन्हें अचेतन का कोई पता नहीं है। फ्रायड को उसी तरह से चिंताएं पकड़ती हैं जैसे उन्हें पकड़ती हैं जिन्हें अचेतन का कोई पता नहीं है। अचेतन का जो काम है वह फ्रायड के ऊपर उसी भांति जारी है जिस भांति उन पर जारी है जिन्हें अचेतन का कोई खयाल नहीं है। अनुमान है, लेकिन अनुमान भी बड़ी बात है। फिर फ्रायड के एक सहयोगी ने काम करते-करते अनकांशस के नीचे का भी अनुमान कर लिया। गुस्ताव जुंग ने कलेक्टिव अनकांशस का भी अनुमान कर लिया कि वह जो अचेतन मन है उसके नीचे भी कुछ चीजें मालूम पड़ती हैं। वहीं सब खतम नहीं हो जाता। लेकिन वह भी अनुमान ही है, अनुभव नहीं है। योग अनुभव की यात्रा है। योग स्पेकुलेटिव नहीं है, योग सिर्फ विचार नहीं है, योग अनुभूति है। यह जो तीन मंजिलें ऊपर फैली हैं और तीन मंजिलें नीचे फैली हैं, इनका हमें तब तक पता नहीं चलेगा जब तक हम अपनी मंजिल में सोये हुए हैं। इसलिए पहले हम अपने सोये हुए होने के तथ्य को ठीक से समझ लें तो जागने की यात्रा शुरू हो सकेगी। क्या आपने कभी यह खयाल किया कि आप एक सोये हए आदमी हैं? शायद नहीं खयाल किया होगा। क्योंकि सोये हुए आदमी को इतना भी पता चल जाये कि मैं सोया हुआ हूं तो जागने की शुरुआत हो जाती है। असल में इतनी बात का भी पता चलना कि मैं सोया हुआ हूं, जागने की खबर है। नींद में यह भी पता नहीं चलता कि मैं सोया हुआ हूं, यह भी पता जागने में ही चल सकता है। पागल को यह भी पता नहीं चलता कि मैं पागल हूं, यह भी गैर-पागल को ही पता चल सकता है। नींद में आपने कभी नहीं जाना कि आप सोये हैं, जागकर आपको पता चलता है कि अरे! मैं सोया हुआ था। सोये हुए होने का अनुभव भी जागने का अनुभव है, नींद का अनुभव नहीं है। इसलिए मैं आशा नहीं करता कि आपको पता चला होगा कि आप सोये हुए हैं। लेकिन जो जाग गये हैं, वे कहते हैं कि आप सोये हुए हैं। थोड़ी-सी बातें की जा सकती हैं जिनसे शायद आपको खयाल आ जाये। अप्रमाद 93 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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