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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् प्रतिपादन किया है । इसलिये कृपाकरके कहिये कि नारक कौन हैं ? और उनका निवास कहां है ? अब इसपर कहते हैं कि जो नरकमें हों उनको नारक कहते हैं । उसमें नरककी प्रसिद्धिके अर्थ यह सूत्र कहते हैंरत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमाप्रभाभूमयो घनाम्बुवाता
काशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः पृथुतराः ॥१॥ सूत्रार्थः-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, और महातमःप्रभा ये सप्त पृथिवी अधो २ भागमें घनवात, अम्बुवात, तनुवात तथा आकाश प्रतिष्ठित हैं।
भाष्यम्-रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा इत्येता भूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा भवन्त्येकैकशः सप्त अधोऽधः । रत्नप्रभाया अधः शर्कराप्रभा । शर्कराप्रभाया अधो वालुकाप्रभा । इत्येवं शेषाः । अम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा इति सिद्धे घनग्रहणं क्रियते यथा प्रतीयते घनमेवाम्बु अधः पृथिव्याः । वातास्तु घनास्तनवश्चेति । तदेवं खरपृथिवी पङ्कप्रतिष्ठा पङ्को घनोदधिवलयप्रतिष्ठो घनोदधिवलयं धनवातवलयप्रतिष्ठं घनवातवलयं तनुवातवलयप्रतिष्ठं ततो महातमोभूतमाकाशम् । सर्व चैतत्पृथिव्यादि तनुवातवलयान्तमाकाशप्रतिष्ठम् । आकाशं त्वात्मप्रतिष्ठम् । उक्तमवगाहनमाकाशस्येति । तदनेन क्रमेण लोकानुभावसंनिविष्टा असङ्खधेययोजनकोटीकोट्यो विस्तृताः सप्त भूमयो रवप्रभाद्याः ॥
विशेषव्याख्या-'प्रभाभूमि' शब्द द्वन्द समासके अन्तमें होनेसे उसका शर्कराआदि सबके साथ सम्बध है । जैसे; रत्नप्रभाभूमि, शर्कराप्रभाभूमि वालुकाप्रभाभूमि इत्यादि । ये रत्नप्रभा आदि भूमियां एक एकके अधोभागमें हैं और घनवात, अम्बुवात, तथा आकाश प्रतिष्ठित अर्थात् घनवात, अम्बुवात तनुवात तथा आकाशके आधारपर हैं। सातों अधो अधो भागमें हैं । जैसे प्रथम रत्नप्रभाभूमि है, रत्नप्रभाके अधोभागमें वालुकाप्रभा है, उसके अधो भागमें पङ्कप्रभा है, पङ्कप्रभाके अधोभागमें धूमप्रभा है, धूमप्रभाके अधोभागमें तमःप्रभा और तमःप्रभाके नीचे महातमःप्रभा है। ये सब घनाम्बुवात आकाश प्रतिष्ठ हैं । अब यहां कहते हैं, कि 'अम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः, ऐसे ही सूत्रसे कार्यसिद्ध होता था; पुनः 'घन' ग्रहण क्यों किया? तो घन ग्रहणसे यह निश्चय होता है कि पृथिवीके अधोभागमें घन ही अम्बु है । और वायु तो घन भी है और तनु (सूक्ष्म) भी है । इससे यह सिद्ध हुआ कि खर (शुष्क ) पृथिवी तो पङ्क (कीचड ) पर प्रतिष्ठित है और पङ्क घनोदधिवलय प्रतिष्ठ है। घनोदधिवलय घनवातवलय प्रतिष्ठ ( आधार ) है और घनवातवलय तनुवात (सूक्ष्मवायु) प्रतिष्ठ है, और तनुवातवलयके पश्चात् महातमोभूत ( अन्धकारपूर्ण ) आकाश है । यह सब खर पृथिवी आदिसे लेकर तनुवातवलय पर्यन्त आकाश प्रतिष्ठ है; अर्थात् पृथिवी आदि सब आकाशके आधारपर हैं । और
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