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___ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
६३ इधर उधर विखरे हुए और पवनके झकोरोंसे अभिहत एक कालमें अग्निकी ज्वालासे प्रदीप्त उसी तृणराशिका शीघ्र दाह होता है । अथवा जैसे गणितविद्याका आचार्य क्रियाकी लघुताके अर्थ गुणन तथा भागकी क्रियाओंसे किसी गणनीय पदार्थकी राशिको खण्डआदिके द्वारा शीघ्र अपवर्तन (न्यून) करता है, परन्तु उससे संख्येय पदार्थका अभाव नहीं होता; इसी प्रकार विष, शस्त्र आदि उपक्रमोंसे अभिहत और मृत्युके समुद्धातजन्य दुःखोंसे पीडित जीव कर्मनिमित्तक आभोगके अभावके योगपूर्वक किसी करणविशेषको उत्पन्न करके फलके उपभोगके लाघवार्थ कर्मका अपवर्तन करता है; किन्तु इससे इसको फलका अभाव नहीं होता, अर्थात् विषादिपीडाजन्य दुःखोंसे शीघ्र ही उसके आयुष्कर्मका परिपाक हो गया, इससे इसने फलको पा लिया । और यह भी है; जैसे धुला हुआ जलसे आर्द्र (गीला) कपडा यदि तह लगाके वा संकुचित करके गृहमें स्थापित कर दो तो चिरकालमें शुष्क होगा; परन्तु उसी वस्त्रको यदि फैलाके खुले मैदानमें डाल दो, तो सूर्यकी किरण तथा वायुसे ताडित होकर शीघ्र ही शुष्क हो जावेगा । और उस वस्त्रके मिले रहनेपर कुछ अधिक जल नहीं निकलता और न वह फैलानेसे असम्पूर्ण शुष्क होता, किन्तु दोनों दशाओंमें समान ही जल जाता है, केवल चिरकाल और शीघ्र काल मात्रका भेद है। ऐसे ही यथोक्त विष, शस्त्रादि निमित्त भूत अपवर्तनोंसे शीघ्र ही फलोंका उपभोग हो जाता है । इससे आयुष्कर्मका अपवर्तन होनेमें न तो कृतका प्रणाश (कृतकर्मका नाश) है, और न अकृतका आगमन और फलाभाव ॥ इति तत्त्वार्थाधिगमेऽर्हत्प्रवचनसंग्रहे आचार्योपाधिधारिठाकुरप्रसादशमविरचित
भाषाटीकासमलङ्कृतेः द्वितीयोऽध्यायः ।
अथ तृतीयोऽध्यायः। भाष्यम्-अत्राह । उक्तं भवता । नारका इति गतिं प्रतीत्य जीवस्यौदयिको भावः । तथा जन्मसु नारकदेवानामुपपातः । वक्ष्यति च । स्थितौ नारकाणां च द्वितीयादिषु । आस्रवेषु बह्वारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुष इति ॥ तत्र के नारका नाम क चेति । अत्रोच्यते । नरकेषु भवा नारकाः । तत्र नरकप्रसिद्ध्यर्थमिदमुच्यते
अब यहां कहते हैं कि हे भगवन् ! आपने औदयिकभावके भेदोंकी गतिमें नरकादि चार भेद विवक्षामें नारकोंको कहा है, तथा जन्मोंके विषयमें देव और नारकोंका उपपात रूप जन्म होता है, यह कहा है । और स्थितिके विषयमें नारक जीवों की स्थिति द्वितीय आदि भूमियोंमें आगे कहेंगे । और आस्रव प्रकरणमें भी कहेंगे, कि बहुत आरम्भ तथा परिग्रह नारकायुष् कर्म बांधता है । इत्यादि अनेक स्थलोंमें नारकोंका
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