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श्रीकुन्दकुन्दस्वामीके पद्मनन्दैि, एलाचार्य, वक्रग्रीव, गृद्रपिच्छ आदि अनेक नामान्तर है। और इसी प्रकार कोई २ कहते हैं कि, उमास्वामि भी उन्हींका एक नाम हैं । परन्तु इस विषयमें कोई बलिष्ठ प्रमाण नहीं मिलनेसे एकाएक विश्वास नहीं किया जा सकता । इसके अतिरिक्त कुन्दकुन्दस्वामीके उपर्युक्त नामोंमेंसे एक गृपिच्छ नामको उमास्वामिका वाचक भी मानते हैं । जैसे,
तत्त्वार्थसूत्रकर्तारं गृपिच्छोपलक्षितम् ।
वन्दे गणीन्द्रसंयातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥ परन्तु किंचित् विचार करनेसे गृपिच्छोपलक्षित यह उमास्वामिका नामान्तर नहीं किन्तु विशेषण प्रतीत हो जाता है । गृङपिच्छ ( कुन्दकुन्द ) गुरुके नामसे उपलक्षित अर्थात् गृपिच्छ है, गुरु जिसका ऐसा युक्तियुक्त अर्थ उक्तपदका बन जाता है । और ऐसा माननेमें भी कोई विरोध नहीं आ सकता कि, अपने गुरुकी नाईं वे भी गृङ्गकी पिच्छी रखते थे, उनका नाम गृद्रपिच्छ नहीं था। __ यहांपर पाठकोंको कौतुक उत्पन्न होगा कि, गृङ्गपिच्छ ऐसा नाम कुन्दकुन्दस्वामीका कैसे हुआ ? सो इस विषयमें गुरुपरम्परासे एक कथा प्रसिद्ध है उसे हम यहां लिखदेना उचित समझते है:___ एक वार कुन्दकुन्दखामी स्वमनोगत किसी शंकाका निवारण करनेके लिये चारण ऋद्धिके बलसे
आकाशमार्गके द्वारा विदेहक्षेत्रस्थ तीर्थकरभगवान्के समवशरणमें जा रहे थे। मार्गमें अचानक उनकी मयूरपिच्छिका हाथसे छूटकर गिर गई, और उसी समय आकाशमें जाते हुए एक गृङ्गकी पिच्छि पड़ी। तब मुनिवेषकी रक्षाकेलिये उन्होंने उसे ग्रहण कर ली। और विदेहक्षेत्रको गमन किया । कहते है, तबहीसे उनका नाम गृपिच्छ हो गया । उमास्वामिका अपरनाम गृपिच्छ माननेवाले उपर्युक्त कथाको उमास्वामिकी ही बतलाते हैं, और ऐसा मानकर वे उमास्वामिको चारणऋद्धि प्राप्त भी मानते हैं। ___ कुन्दकुन्दस्वामीके बनाये हुए ८४ प्राभृत (पाहुड) ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं, जिनमेंसे नाटकसमयसार पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, रयणसार, षट्पाहुड़ आदि अनेक प्राकृत ग्रन्थ मिलते हैं । परन्तु उमास्वामिका एक तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ ही मिलता है, जो कि संस्कृत है और इसके अतिरिक्त उनका कोई दूसरा ग्रन्थ सुननेमें भी नहीं आया।
१ पद्मनन्दि नामके धारण करनेवाले और भी ७-८ आचार्य हो गये हैं । उनमेंसे पंचविंशतिका, जम्बूद्वी. पप्रज्ञप्ति, आदिके कर्ता विशेष प्रसिद्ध हैं। २-तस्यान्वये भूविदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः ।
श्रीकुन्दकुन्दादिमुनीश्वराख्यः सत्संयमादुद्गतचारणार्द्धिः । अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसा-वाचार्यशब्दोत्तरगृहपिच्छः ।
तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्य-स्तात्कालिकाशेषपदार्थवादी ॥ इन श्लोकोंसे यह जान पडता है कि कुन्दकुन्दका पद्मनन्दि प्रथम नाम था, पश्चात् कुन्दकुन्दादि अनेक नाम हुए । और उमास्वाति उनके पीछे आचार्य हुए, जिनको गृद्धपिच्छ भी कहते थे। सो इससे कुन्दकुन्द
और उमास्वातिके एक होनेकी शंका तो सर्वथा मिट जाती है, रही गृपिच्छ संज्ञाकी बात सो दोनोंके घटित हो सकती है।
३ कुन्दकुन्द नामके एक दूसरेभी आचार्य हुए हैं, जिन्होंने वैद्यगाहा नामक प्राकृत वैद्यकग्रन्थ बनाया है। वैधगाहामें ४००० गाहा (गाथा) हैं।
४ उमास्वामिरचित श्रावकाचार तथा पंचनमस्कारस्तवन ऐसे दो ग्रन्थ और प्रसिद्ध हैं, परन्तु वे लघु उमास्वामिके हैं, जो कि उनसे बहुत पीछे हुए है।
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