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तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थकी रचनाके विषयमें कर्णाटकभाषाकी तत्त्वार्थवृत्ति नामकटीकाकी प्रस्तावनामें एक बड़ी मनोरंजक कथा लिखी है, वह इस प्रकार है कि:
सौराष्ट्र ( गुजरात ) देशके किसी नगरमें एक पवित्रान्तःकरण और नित्यनैमित्तक क्रियाओंमें तत्पर श्रद्धावान् द्वैपायक नामक श्रावक रहता था । वह बड़ा विद्वान् था । और इसलिये चाहता था कि किसी उत्तमग्रन्थकी रचना करूं, परन्तु गार्हस्थ्यजंजालके कारण अनवकाशवशतः कुछ कर नहीं सकता था । निदान एकदिन उसने प्रतिज्ञा की कि, प्रतिदिन जब एक सूत्र बना लूंगा, तब ही भोजन करूंगा, अन्यथा उपवास करूंगा । और मोक्षशास्त्रके बनानेका निश्चय करके उसी दिन उसने "दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः” यह प्रथम सूत्र . बनाया । तथा विस्मरण हो जानेके भयसे अपने घरके एक खंभेपर उसे लिख दिया ।
इसके पश्चात् दूसरे दिन वह श्रावक किसी कार्यके निमित्त कहीं अन्यत्र चला गया और उसके घर एक मुनिराज आहारके लिये आये । मुनिके दर्शनसे द्वैपायककी सुशीला गुणवती भार्याने अत्यन्त प्रसन्न होकर नवधाभक्तिपूर्वक उन्हें भोजन कराया । भोजनोपरान्त मुनिराजने खंभेपर लिखा हुआ वह सूत्र जो द्वैपायकने लिखा था, देखकर किंचित् विचार किया और तत्काल ही उसके पहले सम्यक् विशेषण लिखकर वहांसे चल दिया । तदनन्तर जब द्वैपायक आया, तो उसे अपने लिखे हुए सूत्रमें सम्यक् विशेषण अधिक लिखा देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, और साथ ही सूत्रकी शुद्धता निर्दोषतासे आनन्द भी हुआ । भार्याके पूछनेसे विदित हुआ कि, मुनिराज आहारके निमित्त पधारे थे, कदाचित् वे लिख गये होंगे । तब श्रावक उसी समय बडी आतुरतासे उनके ढूंढनेको निकला । यत्र तत्र बहुत भटकनेके पश्चात् एक रमणीक वनमें उसे उक्त मुनिराजके दर्शन हुए। वे एक बड़े भारी मुनियोंके संघके नायक थे । उनकी मुद्राके दर्शनमात्रसे वह श्रावक जान गया कि, इन्हीं महात्माने मेरे सूत्रको शुद्धकरनेकी कृपा की होगी। और गद्गद होके उनके चरणोंपर पड़ गया, बोला, भगवन् ! उस मोक्षशास्त्रको आप ही पूर्ण कीजिये । ऐसे महान् ग्रन्थके रचनेका सामर्थ्य मुझमें नहीं है । आपने बड़ा उपकार किया, जो मेरी वह बडी भारी भूल सुधार दी । सच है दर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्षका मार्ग नहीं है. किन्तु सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र ही मोक्षमार्ग है। अतएव "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" ही परिपूर्ण आरै विशुद्ध सूत्र है । श्रावकके उक्त आग्रह और प्रार्थनाको मुनिराज टाल नहीं सके, और निदान उन्होंने इस तत्त्वार्थसूत्र मोक्षशास्त्रको रचके पूर्ण किया । पाठक ! वे मुनिराज और कोई नहीं, हमारे इस लेखके मुख्यनायक भगवान् उमास्वामि ही थे ।
दिगम्बरीय ग्रन्थोंके द्वारा जितना संग्रह हो सका, ऊपर लिखा जा चुका । अब श्वेताम्बर सम्प्रदायमें आपके विषयमें कितना इतिहास मिलता है, देखनेका प्रयत्न किया जाता है।
श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इस तत्त्वार्थाधिगमभाष्यके कर्ता भी उमास्वामि माने जाते हैं, जैसा कि, आगे कहा जावेगा और यदि वे मूलतत्त्वार्थके कर्ता ही हों, तो उनके माता, पिता, जन्मस्थानादिके विषय विशेष प्रयत्न करनेकी आवश्यकता नहीं है। तत्त्वार्थाधिगमके अंतमें जो प्रशस्ति दी है, उसीसे स्पष्ट होता है कि, उमास्वाति आचार्य ग्यारह अंगके ज्ञाता व श्रीघोषनन्दिक्षमणके शिष्य
और वाचकमुख्य शिवश्रीके प्रशिष्य थे । तथा वाचनारूपसे महावाचकक्षमण मुण्डपादके शिष्य वाचकाचार्य मूलनामके शिष्य थे । आपके पिताका नाम स्वाति और माताका वात्सी था।
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