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न्यग्रोधिकानगरीमें आपका जन्म हुआ था, परन्तु यह ग्रन्थ आपने कुसुमपुर (पाटलिपुत्र ) में विहार करते हुए बनाया था। कहते हैं कि, आपने एक वार सरस्वतीकी पाषाणमूर्तिसे शब्दोच्चारण करवाये थे।
जम्बूद्वीपसमासटीकामें आचार्य श्री विजयसिंहजीने लिखा है कि, उमास्वातिकी माताका नाम उमा और पिताका स्वाति था, इससे उनका नाम उमास्वाति हुओ ! अनेक विद्वानोंका मत है कि, आप बड़े भारी वैयाकरण भी थे । कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरिने अपने शब्दानुशासनमें अनु और उपको उत्कृष्टताके अर्थमें विधान करते हुए उमास्वातिका नाम उदाहृत किया है।
श्वेताम्बर सम्प्रदायमें उमास्वातिके बनाये हुए प्रशमरति, यशोधरचरित्र, श्रावकप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपसमास, पूजाप्रकरण आदि अनेक ग्रन्थ मिलते हैं। श्रीजिनप्रभसूरिने अपने तीर्थकल्प नाम ग्रन्थमें तथा श्रीहरिभद्रसूरिने प्रशमरतिकी टीकामें आपको पांचसौ ग्रन्थोंका प्रणेता बतलाया है । इससे सिद्ध है कि, आप एक असाधारण शक्तिशाली विद्वान् थे । . श्वेताम्बराचार्योंकी पट्टावलियोंमें उमास्वातिका नाम कहीं नहीं मिलता, इससे वे किस शताब्दिमें हुए थे, इसका यथार्थ निर्णय नहीं हो सकता, परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि, परिश्रमपूर्वक नानाग्रन्थोंका पर्यालोचन करनेसे कालान्तरमें यह कठिनता दूर हो जावेगी । डाक्टर पिटर्सनकी रिपोर्टमें वीर निर्वाणके ३०० वर्ष पीछे उमास्वातिका होना बतलाया है, परन्तु जबतक इस विषयमें पूरे २ प्रमाण न दिये जावें, तबतक विश्वास नहीं हो सकता । क्योंकि ऐतिहासिक दृष्टिसे ऐसी अनेक शंकायें उपस्थित होती हैं, जिनसे उमास्वातिका विक्रमके बहुत पहले होना बन नहीं सकता।
यदि दिगम्बरियोंके माने हुए उमास्वाति ही तत्त्वार्थसूत्र मूलके कर्ता हैं, और उन्हें श्वेताम्बरी भाई भी मानते हैं, तो इसमें सन्देह नहीं है कि, वे एक ही थे, और उनका समय भी एक ही था। ऐसा नही हो सकता कि, श्वेताम्बरियोंके उमास्वाति किसी समयमें हुए और दिगम्बरियोंके और किसी समयमें । क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र एक ही है। ऐसी दशामें दिगम्बरीय सम्प्रदायमें माना हुआ समय अर्थात् विक्रमकी प्रथम शताब्दि मान लेनेमें कोई हर्ज नहीं है । हां यह दूसरी बात है कि, उमास्वाति श्वेताम्बरी थे अथवा दिगम्बरी ? परन्तु अब मैं समझता हूं, इस विषयमे विवाद करनेकी आवश्यकता नहीं है, दोनोंको ही अपने २ कहके मानना चाहिये और पूजना चाहिये । उनके ग्रन्थोंने दोनोंका ही अनन्त उपकार किया है। इतनेपर भी यदि किसीको उक्त विवाद के निर्णय करनेकी इच्छा हो, तो वह प्रसन्नतासे निर्णय करे । नाना ग्रन्थों और ऐतिहासिक ग्रन्थोंके पाठसे उसकी इच्छा पूर्ण हो सकती है। मैं इस विषयमें और कुछ नहीं कहना चाहता ।
तत्त्वार्थसूत्रमें भिन्नता । तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें मान जाता है, परन्तु इससे ऐसा नहीं समझलेना चाहिये कि, दोनों सम्प्रदायोंमें वह एकसा है, नहीं ! उसके अनेक सूत्रोंमें भेद है, जो कि, एक पृथक् दिये कोष्टकसे विदित होगा । परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि, भगवदुमास्वातिने एक ही
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१ ......अस्य संग्रहकारस्योमा माता स्वातिः पिता तत्सम्बन्धादुमास्वातिः...... २ उपोमास्वातिसंगृहीतारः ( अध्याय २ पाद २ सूत्र ३९ ।)
३ इहाचार्यः श्रीमानुमास्वातिपुत्र.......पञ्चशतप्रवन्धप्रणेता वाचकमुख्यः...... । Jain Education International
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