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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् हैं, वे न तो स्त्री होते हैं, और न पुरुष होते हैं । क्योंकि उनका चारित्रमोहनीय नोकषाय वेदनीय कर्मोंके आश्रयभूत तीन वेदोंमेंसे अशुभगति नामके सापेक्ष और पूर्वनिबद्ध संचित उदयको प्राप्त नपुंसक वेदनीय ही कर्म होता है, न कि अन्य ॥ ५० ॥
न देवाः ॥५१॥ सूत्रार्थः-देव नपुंसक नहीं होते। __ भाष्यम्-देवाश्चतुर्निकाया अपि नपुंसकानि न भवन्ति । स्त्रियः पुमांसश्च भवन्ति । तेषां हि शुभगतिनामापेक्षे स्त्रीपुंवेदनीये पूर्वबद्धनिकाचिते उदयप्राप्ते द्वे एव भवतो नेतरत् । पारिशेष्याच्च गम्यते जरायवण्डपोतजास्त्रिविधा भवन्ति स्त्रियः पुमांसो नपुंसकानीति ॥
विशेषव्याख्या-चारों निकायवाले देव नपुंसक नहीं होते, स्त्री और पुरुष ही होते हैं । क्योंकि उनके शुभगतिनामकर्म सापेक्ष पूर्व जन्ममें निबद्ध संचितकर्म उदयको प्राप्त स्त्री वेदनीय, तथा पुंवेदनीय ये दो ही होते हैं, न कि अन्य नपुंसक । और नारक संमू
छैन वालोंका नपुंसक, देवोंका स्त्री तथा पुंवेदनीय होनेसे शेष अर्थात् जरायुज अण्डज, तथा पोतज जीवोंके त्रिविध वेद वा लिंग होते हैं, अर्थात् इनमें स्त्री पुरुष और नपुंसक तीनों होते हैं ॥ ५१ ॥ ___ अत्राह । चतुर्गतावपि संसारे किं व्यवस्थिता स्थितिरायुष उताकालमृत्युरप्यस्तीति ।
अत्रोच्यते । द्विविधान्यायूंषि । अपवर्तनीयानि अनपवर्तनीयानि च । अनपवर्तनीयानि पुनर्द्विविधानि । सोपक्रमाणि निरुपक्रमाणि च । अपवर्तनीयानि तु नियतं सोपक्रमाणीति॥ तत्र
अब यहांपर कहते हैं कि संसारमें चारों गतियोंमें आयुष् (उमर) की स्थिति व्यवस्थित है, नहीं है अथवा अकाल मृत्यु है ? अर्थात् नियतकाल ही आयुष् है अथवा अकाल मृत्यु भी है ? इस पर उत्तर कहते है, कि आयु दो प्रकारकी होती हैं एक अपवर्तनीय अर्थात् जिनका न्यूनाधिक भाव हो सकै, और दूसरे अनपवर्तनीय अर्थात् जिनके नियतकालकी स्थितिमें कुछ अपवर्तन(न्यूनीकरण वा खंडनादि) न हो सके । पुनः अनपवर्तनीय, सोपक्रम तथा निरुपक्रम भेदसे दो प्रकार हैं । और अपवर्तनीय तो उपक्रमसहित ही सदा होती हैं। उनमेंऔपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुषासङ्खयेयवर्षायुषोऽनपवायुषः॥५२॥
सूत्रार्थः-औपपातिक अर्थात् उपपात रूप जन्मसे उत्पन्न होनेवाले अन्तिम देहवाले उत्तम पुरुष, तथा असंख्येय वर्ष आयुष्वाले, ये सब अनपवर्त्य आयुष्वाले होते हैं । __ भाष्यम्-औपपातिकाश्चरमदेहा उत्तमपुरुषा असङ्खयेयवर्षायुष इत्येतेऽनपवायुषो भवन्ति । तत्रौपपातिका नारकदेवाश्चेत्युक्तम् । चरमदेहा मनुष्या एव भवन्ति नान्ये । चरमदेहा अन्त्यदेहा इत्यर्थः । ये तेनैव शरीरेण सिध्यन्ति । उत्तमपुरुषास्तीर्थकरचक्रवर्त्यर्धचक्रवर्तिनः । असङ्केयवर्षायुषो मनुष्याः तिर्यग्योनिजाश्च भवन्ति । सदेवकुरूत्तरकुरुषु सान्तर
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