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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
तैजसमपि शरीरं लब्धिप्रत्ययं भवति ॥
तैजस शरीर भी लब्धिप्रत्यय अर्थात् लैब्धिरूप कारणसे होता है ।
कार्मणमेषां निबन्धमाश्रयो भवति । तत्कर्मत एव भवतीति बन्धे परस्ताद्वक्ष्यति । कर्म हि कार्मणस्य कारणमन्येषां च शरीराणामादित्यप्रकाशवत् ॥ यथादित्यः स्वमात्मानं प्रकाशयत्यन्यानि च द्रव्याणि न चास्यान्यः प्रकाशकः । एवं कार्मणमात्मनश्च कारणमन्येषां च शरीराणामिति ॥
कार्मण इन शरीरोंका निबन्ध अर्थात् आश्रय होता है, वह कार्मण कर्मसे ही होता है, ऐसा बन्धके विषय में आगे कहेंगे । कर्म जो है वह कार्मणका तथा अन्य शरीरोंका भी सूर्यके प्रकाशके सदृश कारण है । जैसे सूर्य अपना भी प्रकाश करता है और अन्य द्रव्यों का भी । किन्तु सूर्यका प्रकाशक कोई नहीं है ।
अत्राह । औदारिकमित्येतदादीनां शरीरसंज्ञानां कः पदार्थ इति । अत्रोच्यते । उद्गतारमुदारम् । उत्कटारमुदारम् । उद्गम एव वोदारम् । उपादानात्प्रभृति अनुसमयमुद्गच्छति वर्धते जीर्यते शीर्यते परिणमतीत्युदारम् । उदारमेवौदारिकम् । नैवमन्यानि ॥ यथोद्गमं वा निरतिशेषं ग्राह्यं छेद्यं भेद्यं दाह्यं हार्यमित्युदारणादौदारिकम् । नैवमन्यानि ॥ उदारमत च स्थूलनाम । स्थूलमुद्गतं पुष्टं बृहन्महदित्युदारमेवौदारिकम् । नैवं शेषाणि । तेषां परं सूक्ष्ममित्युक्तम् ॥
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परं
यहां कहते हैं । औदारिक आदि जो पांचों शरीर हैं, उनमें औदारिक आदि संज्ञाओं का शब्दार्थ क्या है ? इस प्रश्नका उतर कहते हैं कि जो उद्गतार है अथवा जो उत्कटार है, वही उदार है, अर्थात् जो उत्पन्न होकर शीघ्र वृद्धिको प्राप्त हो । अथवा उद्गम (उत्पत्ति ) ही उदार है, अर्थात् जो उपादानकारणसे आरंभ करके प्रतिसमय ( कालके अल्पतम भागमें) उद्गमन करता है, बढता है, जीर्ण होता है, विशीर्ण होता है और परिणामको प्राप्त होता है, वह उदार है और उदारको ही औदारिक कहते हैं । अन्य वैक्रियक आदि वर्धन, जीरण, तथा शीरण परिणमन आदिस्वभाववाले नहीं है । अथवा जैसे; उद्गके अनुसार विदारण आदि भी निरतिशेष ग्रहण करना चाहिये । जैसे, छेद्य, भेद्य, दाह्य तथा हार्य भी यह है; इस हेतुसे उदारण व विदारण शील होनेसे यह औदारिक है । अर्थात् यह शरीर छेदन, भेदन, दहन, आदिके योग्य होनेसे औदारिक है, उस तरह अन्य शरीर नहीं है | और उदार यह स्थूलका भी नाम है, इसलिये स्थूल, उद्गत, पुष्ट, वृहत्, तथा महान् यह सब उदारके ही अर्थको कहते हैं, इस हेतुसे ये सब औदारिक हैं । क्योंकि जो उदार है वही औदारिक है । इस प्रकार स्थूल, पुष्ट, तथा बृहत्, (बड़ा ) आदि अन्य शरीरोंमें नहीं घटते; क्योंकि अन्य शरीरोंके विषय में तो " परं परं सूक्ष्मम् " आगे २ के एक दूसरेसे सूक्ष्म हैं, ऐसा पूर्व प्रसंग में कहा है ।
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१ तपोविशेषसे ऋद्धियोंका प्राप्त होना लब्धि है ।
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