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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । अनुग्रह हैं, उनके प्रति अर्थात् उनकेलिये तेजका उत्पत्तिस्थान और चन्द्रमाके खभावका सम्पादक तथा अति दैदीप्यमान सूर्यकी उदय होती हुई प्रभाकी छायाका उत्पादक शरीरोंमें यह तैजस ऐसे है, जैसे मणियोंसे दैदीप्यमान ज्योतिष्क विमान ॥ ४३ ॥
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्याऽऽचतुभ्यः ॥४४॥ सूत्रार्थः-उन दोनोंको आदिलेके एक कालमें एक जीवके चार शरीर पर्यन्त प्राप्य हैं।
भाष्यम्-ते आदिनी एषामिति तदादीनि । तैजसकार्मणे. यावत्संसारभाविनी आदि कृत्वा शेषाणि युगपदेकस्य जीवस्य भाजान्याचतुर्थ्यः । तद्यथा । तैजसकार्मणे वा स्याताम् । तैजसकार्मणौदारिकाणि वा स्युः । तैजसकार्मणवैक्रियाणि वा स्युः । तैजसकामणौदारिकवै. क्रियाणि वा स्युः । तैजसकार्मणौदारिकाहारकाणि वा स्युः ॥ कार्मणमेव वा स्यात् । कार्मणौदारिके वा स्याताम् । कार्मणवैक्रिये वा स्याताम् । कार्मणौदारिकवैक्रियाणि वा स्युः । कार्मणौदारिकाहारकाणि वा स्युः । कार्मणतैजसौदारिकवैक्रियाणि वा स्युः । कार्मणतैजसौदारिकाहारकाणि वा स्युः । न तु कदाचिद्युगपत्पञ्च भवन्ति । नापि वैक्रियाहारके युगपद्भवतः स्वामिविशेषादिति वक्ष्यते ।।
विशेषव्याख्या-तैजस तथा कर्माण जिनकी आदिमें हैं, ऐसे शेष शरीर एक कालमें एक जीवके चार तक भाज्य (विकल्प अथवा प्राप्य) हैं । तैजस और कार्माण तो संसारी मात्र सब जीवोंमें होनेवाले हैं, उन्हींको आदि लेकर एक कालमें एक जीवको चार शरीरपर्यन्त विकल्पनीय हैं। जैसे जिसके दो ही शरीरकी योग्यता है, उसके तैजस और कार्माण हो सक्ते हैं । जिसको तीन हो सक्ते हैं, उसके तैजस कार्मण और औदारिक हो सक्ते हैं, अथवा तैजस, कार्मण, और वैक्रियक हो सक्ते हैं । और चारकी योग्यतामें तैजस, कार्मण, औदारिक और वैक्रियक हो सक्ते हैं, अथवा तैजस, कार्मण औदारिक और आहारक हो सक्ते हैं । अथवा तैजसके अनादि सम्बन्धताके खंडन पक्षमें एक ही शरीर जब अनादि सम्बन्ध है, तब केवल कार्मण ही एक हो सक्ता है । दो
१'तदादीनि भाज्यानि, इत्यादि सूत्रकी व्याख्या करते हुए भाष्यकारने 'ते आदिनी एषाम् , ऐसा समासका विग्रह किया है। इससे यह ज्ञात होता है कि पूर्व प्रसंगसे प्रस्तुत जो तैजस और कार्मण हैं, वे 'के ते आदिनी, इस द्विवचनान्त पदसे यहां विविक्षित हैं, अतएव उन्हींको मेढीभूत करके "तैजसकार्मणे यावसंसारभाविनी,, ऐसा विवरण किया है। अतएव उन दोनोंको आदिलेके चार शरीरतक एक कालमें एक जीवको विकल्पनीय हैं, और ऊपर कहे हुए पांच विकल्प करना जब तैजस अनादिसम्बन्ध रूपसे एक आचार्यके मतमें खण्डन किया है, तब तो एक जीवको एक कालमें तीन ही हो सक्ते हैं, और 'ते' द्विवचनान्त विग्रहसे आचार्यका यह अभिप्राय है कि आश्रयरूपसे तैजस है, अथवा 'तत् कार्मणं आदि एषां तानि तदादीनि, ऐसी व्याख्या करना और सात विकल्प करना ।
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