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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् भाष्यम्-परे द्वे शरीरे तैजसकार्मणे पूर्वतः पूर्वतः प्रदेशार्थतयानन्तगुणे भवतः । आहारकात्तैजसं प्रदेशतोऽनन्तगुणम् । तैजसात्कार्मणमनन्तगुणमिति ।
विशेषव्याख्या-पूर्व तीन शरीरोंसे परे जो दो शरीर तैजस और कार्मण हैं, वे पूर्व २ प्रदेशोंकी अपेक्षासे अनन्तगुणें प्रदेशवाले हैं । जैसे आहारकके प्रदेशोंकी अपेक्षासे तैजस शरीरके प्रदेश अनन्तगुणें हैं, और तैजस शरीरके प्रदेशोंकी अपेक्षासे कार्मण शरीरके प्रदेश अनन्तगुणें हैं ॥ ४० ॥
अप्रतिघाते ॥४१॥ सूत्रार्थ:-और ये अन्तके दो शरीर अप्रतिघात हैं। भाष्यम्-एते द्वे शरीरे तैजसकार्मणे अन्यत्र लोकान्तात्सर्वत्राप्रतिघाते भवतः । विशेषव्याख्या-पूर्व सूत्रसे परेका सम्बन्ध इसमें भी आता है, इसलिये ये अन्तिम दो शरीर अप्रतिघात अर्थात् प्रतिघातशून्य हैं । तात्पर्य यह कि ये दो तैजस और कार्मण कहीं किसीसे नहीं रुकते, और न ये किसीको रोकते हैं । परन्तु यह व्यवस्था लोकान्त तक है अर्थात् लोकके अन्तपर्यन्त इनकी गति है, लोकान्तके आगे इनका प्रतिघात हो जाता है ॥ ४१ ॥
__ अनादिसम्बन्धे च ॥४२॥ सूत्रार्थः-और इन दोनोंके साथ जीवका अनादि सम्बन्ध भी है। भाष्यम्-ताभ्यां तैजसकार्मणाभ्यामनादिसम्बन्धो जीवस्येत्यनादिसम्बन्ध इति ।
विशेषव्याख्या-तैजस तथा कार्माण शरीर जो हैं, उन दोनोंके साथ जीवका सम्बन्ध अनादिकालसे चला आता है ॥ ४२ ॥
सर्वस्य ॥४३॥ सूत्रार्थः-तैजस तथा कार्माण ये दो शरीर सम्पूर्ण संसारी जीवोंके होते हैं । भाष्यम्-सर्वस्य चैते तैजसकार्मणे शरीरे संसारिणो जीवस्य भवतः । एके त्वाचार्या नयवादापेक्षं व्याचक्षते । कार्मणमेवैकमनादिसम्बन्धम् । तेनैवैकेन जीवस्यानादिः सम्बन्धो भवतीति । तैजसं तु लब्ध्यपेक्षं भवति । सा च तैजसलब्धिर्न सर्वस्य कस्यचिदेव भवति । क्रोधप्रसादनिमित्तौ शापानुग्रहौ प्रति तेजोनिसर्गशीतरश्मिनिसर्गकरं तथा भ्राजिष्णुप्रभासमुदयच्छायानिर्वर्तकं तैजसं शरीरेषु मणिज्वलनज्योतिष्कविमानवदिति ।
विशेषव्याख्या-सम्पूर्ण संसारी जीवमात्रका तेजस तथा कार्मण शरीरसे अनादि सम्बन्ध है । यह सूत्रका अर्थ है, किन्तु कोई २ आचार्य नयवादकी अपेक्षासे व्याख्यान करते हैं । वे कहते हैं, कि एक कार्मणका ही अनादि सम्बन्ध है। वही एक शरीर ऐसा है, जिसके साथ जीवका अनादि सम्बन्ध है। और तैजस शरीर तो लब्धिकी अपेक्षा रखता है और वह किसीको ही होता है । क्योंकि तैजसलब्धि जीवमात्रको नहीं होती किसी २ को होती है । तथा क्रोध और प्रसादके (प्रसन्नताके) कारण जो शाप और
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