SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । विशेषव्याख्या-इस सूत्रसे दो प्रकारके नियमोंका निश्चय होता है, एक तो यह कि जरायुज आदि जीवोंका ही गर्भ होता है, और दूसरा यह कि गर्भ ही जरायुज आदिका होता है। ऐसे ही नारक देवोंका ही उपपात होता है और उपपात ही नारक देवोंका होता है । तथा जरायुज आदिसे जो शेष रहें, उन्हींका संमूर्छन है अथवा सम्मूर्छन ही उनका होता है ॥ ३६॥ औदारिकवैक्रियाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥ ३७॥ सूत्रार्थः-औदारिक वैक्रियक आदि पांच प्रकारके शरीर होते हैं। भाष्यम्-औदारिकं वैक्रियं आहारकं तैजसं कार्मणमित्येतानि पञ्च शरीराणि संसारिणां जीवानां भवन्ति । विशेषव्याख्या-संसारी जीवोंके औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस, तथा कार्मण ये पांचप्रकारके शरीर होते हैं ॥ ३७॥ तेषां परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३८॥ सूत्रार्थः–उनमेंसे आगे २ के सूक्ष्म होते हैं । भाष्यम् तेषामौदारिकादिशरीराणां परं पर सूक्ष्म वेदितव्यम् । तद्यथा । औदारिकाद्वैक्रियं सूक्ष्मम् । वैक्रियादाहारकम् । आहारकात्तैजसम् । तैजसात्कार्मणमिति ॥ विशेषव्याख्या-उन औदारिक आदि पांच शरीरोंमेंसे परं परं अर्थात् आगे २ के पूर्व २ की अपेक्षासे सूक्ष्म जानना चाहिये । जैसे; औदारिककी अपेक्षासे वैक्रियक सूक्ष्म है, वैक्रियककी अपेक्षासे आहारक सूक्ष्म है, आहारकसे तैजस और तैजससे भी कार्मण सूक्ष्म है ॥ ३८ ॥ प्रदेशतोऽसङ्ख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ॥ ३९॥ सूत्रार्थ:-और उन औदारिक आदि शरीरोंमें प्रदेशोंकी अपेक्षासे तैजससे पूर्व २ के शरीर असङ्ख्यगुणें हैं। __ भाष्यम्-तेषां शरीराणां परं परमेव प्रदेशतोऽसङ्खयेयगुणं भवति प्राक् तैजसात् । औदारिकशरीरप्रदेशेभ्यो वैक्रियशरीरप्रदेशा अखङ्खयेयगुणाः । वैक्रियशरीरप्रदेशेभ्य आहारकशरीरप्रदेशा असङ्खयेयगुणा इति ।। विशेषव्याख्या-उन पूर्वोक्त शरीरों में प्रदेशकी अपेक्षासे तैजसके पूर्वके तीन शरीर पर पर असंखेयगुणें है । जैसे औदारिक शरीरके प्रदेशोंकी अपेक्षासे वैक्रियक शरीरके प्रदेश असंखेयगुणें हैं। तथा वैक्रियक शरीरके प्रदेशोंकी अपेक्षासे आहारक शरीरके प्रदेश भी असंखेयगुणें हैं ॥ ३९ ॥ अनन्तगुणे परे ॥४०॥ सूत्रार्थ:-आहारकसे परे जो दो शरीर हैं, वे पूर्व २ से अनन्तगुणें हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy