________________
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । तो अनाहारक रहता है, और शेष कालमें प्रतिसमयमें आहारक होता है । यह अर्थ कैसे हुआ? ऐसी यदि शंका हो तो यहां भी “एक वा दो समयतक तो अनाहारक होता है न कि बहुत समय पर्यन्त" इस प्रकार भंगसे सूत्रार्थकी व्याख्या करनी चाहिये ॥ ३१ ॥ ___ अत्राह । एवमिदानी भवक्षये जीवोऽविग्रहया विग्रहवत्या वा गत्या गतः कथं पुनर्जायत इति अत्रोच्यते । उपपातक्षेत्रं स्वकर्मवशात्प्राप्तः शरीरार्थ पुद्गलग्रहणं करोति । सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्त इति । कायवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानामुपकारः । नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषादिति वक्ष्यामः । तज्जन्म । तच्च त्रिविधम् । तद्यथा___ अब यहांपर 'इस प्रकार जब इस समय एक भवका क्षय हो गया, तब अविग्रह वा विग्रहवती गतिसे यह जीव पुनः कैसे उत्पन्न होता है ? इसका उत्तर कहते हैं । निज उत्पत्तिके क्षेत्रपर अपने कर्मोंके वशीभूत होकर जब यह जीव प्राप्त होता है, तब अपने शरीरके अर्थ पुद्गलोंको ग्रहण करता है । "कषाय सहित होनेसे कर्मोंके योग्य पुद्गलोंको जीव ग्रहण करता है" काय, वाक्, मन तथा प्राण अपान ये सब जीवोके ऊपर पुद्गलोंके उपकार हैं । तथा नाम है कारण जिसको, ऐसा सर्वत्र योग विशेषसे सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाहमें स्थित आत्माके प्रदेशोंमें अनन्तानन्त है, इत्यादि आगे कहेंगे। यहां कर्मोके योग्य शरीरकी रचनाकेलिये पुद्गलोंका ग्रहण करना जन्म है । वह जन्म तीन प्रकारका है । यथा, -
सम्मूछेनग पपाता जन्म ॥ ३२॥ सम्मूर्छनं गर्भ उपपात इत्येतत्रिविधं जन्म । सूत्रार्थः-संमूर्छन, गर्भ, और उपपात ये तीन प्रकारके जन्म हैं ॥ ३२ ॥
सचित्तशीतसंवृत्ताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ॥ ३३ ॥ सूत्रार्थ:-जीवोंके ये जो तीन प्रकारके जन्म कहे हैं, उनके सचित्त आदि, तथा सचित्तादिके विपक्षी अचित्त आदि, और मिश्र अर्थात् सचित्ताचित्त आदि एक २ योनि होती है।
संसारे जीवानामस्य त्रिविधस्य जन्मन एताः सचित्तादयः सप्रतिपक्षा मिश्राश्चैकशो योनयो भवन्ति । तद्यथा । सचित्ता अचित्ता सचित्ताचित्ता शीता उष्णा शीतोष्णा संवृत्ता विवृत्ता संवृत्तविवृत्ता इति । तत्र देवनारकानामचित्ता योनिः । गर्भजन्मनां मिश्रा । त्रिविधान्येषाम् ॥ गर्भजन्मनां देवानां च शीतोष्णा । तैजःकायस्योष्णा । त्रिविधान्येषाम् ॥ नारकैकेन्द्रियदेवानां संवृत्ता । गर्भजन्मनां मिश्रा । विवृत्तान्येषामिति ।
विशेषव्याख्या--इस संसारमें जीवोंका जो त्रिविध जन्म अभी कहा है, उसके ये अर्थात् सचित्तादि, उनके विरोधी अचित्तादि, तथा मिश्र सचित्ताचित्तादि एक २ योनि होती है ।जैसे; सचित्ता, अचित्ता और सचित्ताचित्ता, तथा शीता, उष्णा और शीतोष्णा, ऐसे ही
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org