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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
भवन्ति । तत्र पृथिवीकायोऽनेकविधः शुद्धपृथिवीशर्करावालुकादिः । अपूकायोऽनेकविधो हिमादिः । वनस्पतिकायोऽनेकविधः शैवालादिः ॥
विशेषव्याख्या - पृथिवीकायिक, अप् (जल) कायिक, तथा वनस्पतिकायिक ये त्रिविध जीव स्थावर संज्ञक हैं । इनमेंसे पृथिवीकायिक अनेक प्रकार शुद्धपृथिवी, शर्करा, वालुकादि हैं । अप्कायिक जो हिम आदि हैं, सो अनेक प्रकारके हैं । और वनस्पति कायिक जो शैवाल आदि हैं वे भी अनेक प्रकार हैं ॥ १३ ॥
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तेजोवायू दीन्द्रियादयश्च साः ॥
१४ ॥ सूत्रार्थः - तेजः कायिक, वायुकायिक, और द्वीन्द्रियादि त्रसजीव हैं ।
भाष्यम् – तेजः कायिका अङ्गारादयः । वायुकायिका उत्कलिकादयः । द्वीन्द्रियात्रीन्द्रि याश्चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रिया इत्येते त्रसा भवन्ति । संसारिणस्त्रसाः स्थावरा इत्युक्ते एतदुक्तं भवति मुक्ता नैव सा नैव स्थावरा इति ॥
विशेषव्याख्या - तेजः कायिक अङ्गारादि, वायुकायिक उत्कलिकादि, तथा द्वीन्द्रियदि अर्थात् दो इन्द्रियवाले, तीन इन्द्रियवाले, चार इन्द्रियवाले और पांच इन्द्रियवाले; ये सब सजीव कहे जाते हैं । " संसारिणस्त्र सस्थावराः" अर्थात् संसारीजीव त्रस तथा स्थावर हैं, ऐसा कहने से यह फलित हुआ कि मुक्तजीव न तो त्रस हैं, और न स्थावर हैं ॥ १४ ॥
पञ्चेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥
सूत्रार्थः - इन्द्रियां पांच हैं ।
भाष्यम् – पञ्चेन्द्रियाणि भवन्ति । आरम्भो नियमार्थः षडादिप्रतिषेधार्थश्च । इन्द्रियं । इन्द्रलिङ्गमिन्द्रदिष्टमिन्द्रदृष्टमिन्द्रसृष्टमिन्द्रजुष्टमिति वा । इन्द्रो जीवः सर्वद्रव्येष्वैश्वर्ययोगाद्विषयेषु वा परमैश्वर्ययोगात् । तस्य लिङ्गमिन्द्रियं लिङ्गनात्सूचनात्प्रदर्शनादुपष्टम्भनाद्व्यञ्जनाच जीवस्य लिङ्गमिन्द्रियम् ॥
विशेषव्याख्या - इस सूत्रका आरंभ नियमकेलिये है, अर्थात् इन्द्रियां पांच ही हैं, न कि छह अथवा चार, इस प्रकार नियम तथा षट् आदि संख्याका निषेध ये दो अर्थ सिद्ध हो गये । इन्द्रलिङ्गम् इन्द्रका लिङ्ग अर्थात् ज्ञापक व बोधक जो है वह इन्द्रिय है, इन्द्रदिष्टम् इन्द्रसे निज २ कार्योंमें आज्ञप्त जो हैं वे इन्द्रिय हैं, इन्द्रदृष्टम् अर्थात् इन्द्रसे अवलोकित, इन्द्रसृष्टम् इन्द्रसे सृष्ट, और इन्द्रजुष्टम् इन्द्र से सेवित । इन्द्र जीवात्माको कहते हैं, क्योंकि सम्पूर्ण द्रव्योंमें इसका ऐश्वर्यका सम्बन्ध है, अथवा सब विषयों में ऐश्वर्यका सम्बन्ध है । जीवात्माके सूचनसे, उसके प्रदर्शनसे, उपष्टम्भ करनेसे अथवा व्यक्त करनेसे ये इन्द्रिय हैं ॥ १५ ॥
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द्विविधानि ॥ १६ ॥
सूत्रार्थः – इन्द्रियां दो प्रकारकी हैं ।
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