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सभाष्यत्तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
स पुनर्यथासङ्ख्थमष्टचतुर्भेदो भवति । ज्ञानोपयोगोऽष्टविधः । तद्यथा । मतिज्ञानोपयोगः श्रुतज्ञानोपयोगोऽवधिज्ञानोपयोगो मनःपर्यायज्ञानोपयोगः केवलज्ञानोपयोगो मत्यज्ञानोपयोगः श्रुतज्ञानोपयोगो विभङ्गज्ञानोपयोग इति । दर्शनोपयोगचतुर्भेदः । तद्यथा । चक्षुर्दर्शनोपयोगोऽचक्षुर्दर्शनोपयोगोऽवधिदर्शनोपयोगः केवलदर्शनोपयोग इति ॥
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विशेषव्याख्या - वह उपयोग दो प्रकारका है । एक साकार और दूसरा अनाकार । अर्थात् पहिला ज्ञानोपयोगसाकार दूसरा दर्शनोपयोगअनाकार । और वह यथाक्रमसे अष्टभेद तथा चतुर्भेद है । उनमें से ज्ञानोपयोग के आठ भेद हैं । जैसे, :- मतिज्ञानोपयोग, श्रुतज्ञानोपयोग, अवधिज्ञानोपयोग, मनःपर्यायज्ञानोपयोग तथा केवलज्ञानोपयोग, मत्यज्ञानोपयोग, श्रुताज्ञानोपयोग, और विभङ्गज्ञानोपयोग, । यह अष्टविध ज्ञानोपयोग है । और दर्शनोपयोग चार प्रकारका है । जैसे, — चक्षुर्दर्शनोपयोग, अचक्षुर्दर्शनोपयोग, अवधिदर्शनोपयोग, और केवलदर्शनोपयोग । यही द्विविध उपयोग है ॥ ९ ॥
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संसारिणी मुक्ताश्च ॥ १० ॥
सूत्रार्थः – संसारी तथा मुक्त भेदसे जीवके दो भेद हैं ।
भाष्यम् – ते जीवाः समासतो द्विविधा भवन्ति संसारिणो मुक्ताश्च । किं चान्यत्विशेषव्याख्या - जिस जीवका पूर्वमें उपयोग लक्षण कहा है, प्रकारका है । एक तो संसारी जो अनेक प्रकार के जन्मधारणकरके रते हैं, और दूसरे मुक्त जीव वे हैं, जिनका संसारसे सम्बन्ध छूट आवागमनसे रहित हो गये हैं ॥ १० ॥
वह जीव संक्षेपसे दो संसार में भ्रमण कगया है, तथा जो
और भी,:
समनस्कामनस्काः ॥ ११ ॥
सूत्रार्थ:-- जीवके समनस्क और अमनस्क ये दो भेद हैं ।
भाष्यम् - समासतस्ते एव जीवा द्विविधा भवन्ति समनस्काश्च अमनस्काश्च । तान्परस्ताद्वक्ष्यामः ॥
विशेषव्याख्या- - समनस्क तथा अमनस्क, अर्थात् मनसहित और मनरहित ये दो भेद जीवके हैं । हम इनका अर्थात् समनस्क और अमनस्कों का वर्णन पीछेसे करेंगे । संसारिणस्त्र सस्थावराः ।। १२ ।।
सूत्रार्थः – पुनः त्रस तथा स्थावर भेदसे संक्षेप में संसारी जीव दो प्रकारके हैं । भाष्यम् - संसारिणो जीवा द्विविधा भवन्ति त्रसाः स्थावराश्च । तत्र —
विशेषव्याख्या - संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं; त्रस और स्थावर । उनमें :पृथिव्यन्वनस्पतयः स्थावराः ॥ १३ ॥
सूत्रार्थ:- पृथिवी, जल और वनस्पति ये स्थावर जीव हैं ।
भाष्यम् – पृथिवी कायिका अप्कायिका वनस्पतिकायिका इत्येते त्रिविधाः स्थावरा जीवा
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