SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अथ द्वितीयोऽध्यायः । अत्राह । उक्तं भवता जीवादीनि तत्त्वानीति । तत्र को जीवः कथं लक्षणो वेति । अत्रोच्यते । यहांपर कहते हैं, कि आपने जीव आदि तत्त्वोंको कहा है, सो जीव क्या और उसका लक्षण क्या है ? इसलिये यह अग्रिमसूत्र कहते हैं। औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपा रिणामिकौ च ॥१॥ सूत्रार्थ:-औपशमिक, क्षायिक और मिश्रभाव जीवके स्वतत्त्व हैं, तथा औदयिक और पारिणामिक भी हैं। भाष्यम्-औपशमिकः क्षायिकः क्षायोपशमिक औदयिकः पारिणामिक इत्येते पञ्च भावा जीवस्य स्वतत्त्वं भवन्ति । विशेषव्याख्या-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक तथा पारिणामिक । ये पांचभाव जीवके निजतत्त्व अर्थात् निज स्वभाव हैं ॥ १ ॥ द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ॥२॥ सूत्रार्थ:-औपशमिक आदि पांच भाव यथाक्रमसे दो, नव, अठारह, इक्कीस तथा तीन भेदवाले हैं। भाष्यम्-एते औपशमिकादयः पञ्च भावा द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा भवन्ति । तद्यथा । औपशमिको द्विभेदः क्षायिको नवभेदः क्षायोपशमिकोऽष्टादशभेदः औदयिक एकविंशतिभेदः पारिणामिकस्त्रिभेद इति । यथाक्रममिति येन सूत्रक्रमेणात ऊर्ध्व वक्ष्यामः । विशेषव्याख्या-पूर्वोक्त औपशमिक आदि पांच भाव जो जीवके स्वतत्त्व है उनके भेद इस प्रकार हैं । जैसे औपशमिकके दो भेद, क्षायिकके नव भेद, क्षायोपशमिकके अठारह भेद, औदयिकके इक्कीस भेद, और पारिणामिकके तीन भेद हैं । 'यथाक्रम, इसका यह तात्पर्य है, कि जिस क्रमसे सूत्रमें उपनिबद्ध है, उसीसे ये भेद हैं । और जो जिसके भेद हैं, उनको क्रमसे आगे कहते हैं ॥ २ ॥ सम्यक्त्वचारित्रे ॥३॥ सूत्रार्थः-प्रथम अर्थात् औपशमिकके सम्यक्त्व चारित्र दो भेद हैं। भाष्यम्-सम्यक्त्वं चारित्रं च द्वावौपशमिको भावौ भवत इति । विशेषव्याख्या-सम्यक्त्व तथा चारित्र ये दो प्रकार औपशमिक भावके हैं अर्थात् औपशमिकसम्यक्त्व और औपशमिकचारित्र दो भेद हैं ॥ ३ ॥ ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy