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________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । उत्तर कहते हैं, कि मति, अवधि, तथा मनःपर्याय ज्ञानोंको श्रुतकी उपग्राहकता है । तथा सब संसारी जीवोंका चेतनज्ञ स्वभाव होनेसे इस नयकी दृष्टिमें कोई मिथ्यादृष्टि अथवा अज्ञानी जीव है ही नहीं । इस कारणसे शब्दनय विपर्ययोंका आश्रय नहीं करेगा। इसी कारण प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, तथा आप्तवचन इनका भी प्रामाण्य हम स्वीकार करते हैं । और कहा भी है,: विज्ञायैकार्थपदान्यर्थपदानि च विधानमिष्टं च । विन्यस्य परिक्षेपान्नयैः परीक्ष्याणि तत्त्वानि ॥ १ ॥ ज्ञानं सविपर्यासं त्रयः श्रयन्त्यादितो नयाः सर्वम् ।। सम्यग्दृष्टानं मिथ्यादृष्टेविपर्यासः ॥ २ ॥ ऋजुसूत्रः षट् श्रयते मतेः श्रुतोपग्रहादनन्यत्वात् । श्रुतकेवले तु शब्दः श्रयते नोऽन्यच्छूताङ्गत्वात् ॥ ३ ॥ मिथ्यादृष्टयज्ञाने न श्रयते नास्य कश्चिदज्ञोऽस्ति । ज्ञस्वाभाव्याज्जीवो मिथ्यादृष्टिर्न चाप्यज्ञः ॥ ४ ॥ इति नयवादाश्चित्राः कचिद्विरुद्धा इवाथ च विशुद्धाः ।। लौकिकविषयातीतास्तत्त्वज्ञानार्थमधिगम्याः ॥ ५ ॥ इति तत्त्वार्थाधिगमेऽहत्प्रवचनसङ्ग्रहे प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ॥ एक अर्थवाचक पदोंको तथा अनेक अर्थके वाचक पदोंको जानकर और इष्ट विधानका विन्यास करके अनन्तर परिक्षेपसे नयोंके द्वारा तत्त्वोंकी परीक्षा करनी चाहिये ॥ १॥ आदिसे नैगम आदि तीन नय विपर्यय सहित सब ज्ञानोंका आश्रय करते हैं, उसमें सम्यग्दृष्टिको तो ज्ञान होता है और मिथ्यादृष्टिको विपर्यास होता है ॥ २ ॥ ऋजुसूत्र नय विपर्यय सहित मतिज्ञानको छोड़के शेष षट् ज्ञानोंका आश्रय करता है, क्योंकि मतिज्ञानका अभेद होनेसे श्रुतसे ही उपग्रह हो जाता है, शब्दनय तो श्रुत और केवल ज्ञानका ही आश्रय करता है, न कि अन्यका; क्योंकि शब्दनय श्रुतका ही अङ्ग है ॥ ३॥ तथा मिथ्यादृष्टि अज्ञानका आश्रय नहीं करता। क्योंकि इसकी दृष्टि में ज्ञस्वभाव (ज्ञानी स्वभाव ) होनेसे न तो कोई मिथ्यादृष्टि है, और न कोई अज्ञानी है ॥ ४ ॥ इस रीतिसे विचित्र नयवाद कहीं विरुद्ध सदृश होनेपर भी अति विशुद्ध तथा लौकिक विषयोंसे परे हैं, इसीसे तत्त्वार्थज्ञानकेलिये इनको जानना चाहिये ॥ ५ ॥ इति तत्त्वार्थाधिगमेऽहत्प्रवचनसङ्ग्रहे आचार्योपाधिधारि पण्डितठाकुर प्रसादशर्मविरचित भाषाटीकासमलङ्कतः प्रथमोध्यायः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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