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________________ २४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् रीतिसे वह बार २ बढता तथा न्यून होता और गिरता तथा उत्पन्न होता रहता है. एकरूपमें अवस्थित नहीं रहता किन्तु न्यूनाधिकभावमें सदा अनवस्थितरूप रहता है । और अवस्थित अवधिज्ञान वह है, कि जो जिस क्षेत्रमें जितने आकार में उत्पन्न हुआ हो, उस क्षेत्र से केवलज्ञानकी प्राप्तिपर्यन्त नहीं गिरता अथवा भवके नाश तक नहीं गिरता, वा लिङ्गके समान वह अन्यजातिमेंभी स्थिर रहता है ॥ २३ ॥ . उक्तमवधिज्ञानम् । मनःपर्यायज्ञानं वक्ष्यामः । अवधिज्ञान कह चुके अब मनःपर्यायज्ञानका निरूपण करेंगे । ऋजुविपुलमती मनः पर्यायः ॥ २४ ॥ सूत्रार्थः - मनः पर्यायज्ञानके ऋजुमति तथा विपुलमति ये दो भेद हैं । भाष्यम् – मनःपर्यायज्ञानं द्विविधम् । ऋजुमतिमनः पर्यायज्ञानं विपुलमतिमनः पर्यायज्ञानं च ॥ विशेष व्याख्या - ऋजुमतिमनःपर्याय तथा विपुलमतिमनःपर्याय इन दो भेदोंसे मनः पर्यायज्ञानके दो भेद हैं । ऋजु अर्थात् मनवचनकायकी सरलतासे मनमें स्थित रूपी - पदार्थ तथा परके मनमें स्थित पदार्थ जिससे जाने जाते हैं वह ऋजुमतिमनः पर्याय है. और सरल तथा वक्ररूप दूसरेके मनमें स्थित रूपीपदार्थ जिससे जाने जाते हैं, वह विपुलमतिमनःपर्याय है ॥ २४ ॥ अत्राह । कोऽनयोः प्रतिविशेष इति । अत्रोच्यते । अब यहांपर कहते हैं कि ऋजुमतिमनःपर्यायज्ञान तथा विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानमें क्या भेद है ? यहां कहते हैं । विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः ॥ २५ ॥ सूत्रार्थः - विशुद्धि तथा अप्रतिपात इन दोनों हेतुओंसे ऋजुमति तथा विपुलमति मनःपर्यायज्ञानमें विशेष ( भेद ) है । भाष्यम्—विशुद्धिकृतश्चाप्रतिपातकृतश्चानयोः प्रतिविशेषः । तद्यथा । ऋजुमतिमनः पर्यायाद्विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानं विशुद्धतरम् । किं चान्यत् । ऋजुमतिमनःपर्यायज्ञानं प्रतिपतत्यपि भूयो विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानं तु न प्रतिपततीति ।। - विशेष व्याख्या — विशुद्धिकृत तथा अप्रतिपातकृत इन दोनों में विशेषता है । जैसे ऋजुमतिमनःपर्यायज्ञानकी अपेक्षासे विपुलमतिमनःपर्याय विशुद्धतर है; अर्थात् अधिक विशुद्ध है । और भी ऋजुमतिमनः पर्यायवाला गिर जाता है और विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानवाला पुनः नहीं गिरता ॥ २६ ॥ 1 अत्राह । अथावधिमनःपर्यायज्ञानयोः कः प्रतिविशेष इति । अब कहते हैं कि; अवधिज्ञान तथा मनःपर्यायज्ञानमें क्या भेद है ? For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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