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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् मतिज्ञान तो इन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय ( मन ) को निमित्त मानकर आत्माके ज्ञस्वभाव (जाननेके स्वभाव ) से उत्पन्न होता है अतएव पारिणामिक है; और श्रुतज्ञान तो मतिपूर्वक है और आप्तके उपदेशसे उत्पन्न होता है; इस हेतुसे भी दोनोंका भेद है ॥२०॥
अत्राह । उक्तं श्रुतज्ञानम् । अथावधिज्ञानं किमिति । अत्रोच्यते ॥
अबकहते हैं श्रुतज्ञान तो कह चुके उसके अनन्तर जो अवधिज्ञानका उद्देश (नाम संकीर्तन ) किया है उसका क्या स्वरूप है ? इसलिये अग्रिम सूत्र कहते हैं ।
द्विविधोऽवधिः ॥ २१ ॥ सूत्रार्थः–अवधिज्ञान दो प्रकारका है । भाष्यम्-भवप्रत्ययः क्षयोपशमनिमित्तश्च ॥
विशेषव्याख्या-भवप्रत्यय अर्थात् केवल जन्ममात्रके कारणसे उत्पन्न होनेवाला तथा क्षयोपशमनिमित्तसे उत्पन्न होनेवाला, इस रीतिसे क्षयोपशमनिमित्तक तथा भवप्रत्यय भेदसे अवधिज्ञान दो प्रकारका है ॥ २१ ॥
तत्रउनमें
भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् ॥ २२ ॥ सूत्रार्थः–नारकी जीव तथा देवोंको अवधिज्ञान केवल जन्म निमित्तसे होता है। भाष्यम्-नारकाणां देवानां च यथास्वं भवप्रत्ययमवधिज्ञानं भवति । भवप्रत्ययं भवहेतुकं भवनिमित्तमित्यर्थः । तेषां हि भवोत्पत्तिरेव तस्य हेतुर्भवति पक्षिणामाकाशगमनवत् न शिक्षा न तप इति ॥
विशेष व्याख्या-नरकमें उत्पन्न होनेवाले जीव तथा देव इनको अवधिज्ञान भवप्रत्यय होता है । अर्थात् इनके अवधिज्ञान होनेमें नरकयोनि तथा देवयोनिमें उत्पत्ति होना ही एक हेतु है; जैसे पक्षियोंमें जन्म होना आकाशगमनमें हेतु है । अर्थात् जैसे पक्षियोंका जन्म ही आकाशमें गतिका कारण है न कि शिक्षा वा तप आदि, ऐसे ही नारकी तथा देवोंमें उत्पत्तिमात्रसे अवधिज्ञान प्राप्त होता है ॥ २२ ॥
_ यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥ २३ ॥ सूत्रार्थ:-क्षयोपशमनिमित्तक तथा षट्भेद सहित अवधिज्ञानशेष अर्थात् तिर्यग् योनि और मनुष्य योनियोंमें होता है।
भाष्यम्-यथोक्तनिमित्तः क्षयोपशमनिमित्त इत्यर्थः । तदेतदवधिज्ञानं क्षयोपशमनिमित्त पद्धिं भवति शेषाणाम् । शेषाणामिति नारकदेवेभ्यः शेषाणाम् तिर्यग्योनिजानां मनुष्याणां
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