________________
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४ ॥ सूत्रार्थ:-यह पूर्वोक्त मति तथा स्मृति आदि शब्द वाच्य मतिज्ञान इन्द्रिय और अनिन्द्रियनिमित्तक है।
भाष्यम्-तदेतन्मतिज्ञानं द्विविधं भवति । इन्द्रियनिमित्तमनिन्द्रियनिमित्तं च । तत्रेन्द्रियनिमित्तं स्पर्शनादीनां पञ्चानां स्पर्शादिषु पञ्चस्वेव स्वविषयेषु । अनिन्द्रियनिमित्तं मनोवृत्तिरोघज्ञानं च ॥
विशेषव्याख्या-मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, और अभिनिबोध इन पांचो पर्यायोंसे वाच्य मतिज्ञान दो प्रकार होता है । इन्द्रियनिमित्तक अर्थात् इन्द्रियजन्य, और अनिन्द्रिय निमित्तक अर्थात् मनःकारणक । उनमेंसे इन्द्रियनिमित्तसे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान स्पर्शन आदि पांचो इन्द्रियोंके स्पर्श आदि पांचो निजविषयोंमें ही होता है । और अनिन्द्रियनिमित्त अर्थात् मनोजन्य ज्ञान मनकी सब वृत्तियां तथा ओघ अर्थात् अविभक्त सर्वेन्द्रियविषयक ज्ञान है ॥ १४ ॥
अवग्रहेहापायधारणाः ॥१५॥ सूत्रार्थ:-यह मतिज्ञान अवग्रह, ईहा, अपा (वा) य, तथा धारणा, इन चार भागोंमें विभक्त है।
भाष्यम्-तदेतन्मतिज्ञानमुभयनिमित्तमप्येकशश्चतुर्विधं भवति । तद्यथा । अवग्रह ईहापायो धारणा चेति । तत्राव्यक्तं यथास्वमिन्द्रियैर्विषयाणामालोचनावधारणमवग्रहः । अवग्रहो ग्रहणमालोचनमवधारणमित्यनर्थान्तरम् ॥ अवगृहीते विषयाथैकदेशाच्छेषानुगमनं निश्चयविशेषजिज्ञासा ईहा । ईहा ऊहा तर्कः परीक्षा विचारणा जिज्ञासेत्यनर्थान्तरम् । अवगृहीते विषये सम्यगसम्यगिति गुणदोषविचारणाध्यवसायापनोदोऽपायः । अपायोऽपगमः अपनोदः अपव्याधः अपेतमपगतमपविद्धमपनुत्तमित्यनर्थान्तरम् ॥ धारणा प्रतिपत्तिर्यथास्वं मत्यवस्थानमवधारणं च । धारणा प्रतिपत्तिरवधारणमवस्थानं निश्चयोऽवगमः अवबोध इत्यनान्तरम् ॥
विशेषव्याख्या-यह पूर्वोक्त इन्द्रिय और अनिन्द्रिय उभयनिमित्तक मतिज्ञान एक होनेपर भी चार प्रकारका है । अर्थात् अवग्रह, ईहा, अपाय तथा धारणा ये चार, भेद मतिज्ञानके हैं । वहांपर ऐसा कहा है कि निज २ विषयोंके अनुसार इन्द्रियोंकेद्वारा पदार्थोंका आलोचन, वा अवधारण, जो है उसको अवग्रह कहते हैं । अवग्रह, ग्रहण, आलोचन, तथा अवधारण, ये सब शब्द अनर्थान्तर अर्थात् एकार्थवाचक हैं ॥ अवग्रह रूपज्ञानसे गृहीत जो विषय एकदेश है उस पदार्थके एकदेशसे शेषपदार्थके जाननेकेलिये जो अनुगमन है, अर्थात् विशेष निश्चय करनेकी चेष्टाविशेष वा जिज्ञासा है वही ईहा है । ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा, और जिज्ञासा, ये समानार्थक शब्द हैं । और अवग्रह तथा ईहासे गृहीत विषयमें यह सम्यक् है वा असम्यक्
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org