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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् प्रत्यक्षपरोक्षे इति । अनुमानोपमानागमार्थापत्तिसम्भवाभावानपि च प्रमाणानीति केचिन्मन्यन्ते । तत्कथमेतदिति । अत्रोच्यते । सर्वाण्येतानि मतिश्रुतयोरन्तर्भूतानीन्द्रियार्थसन्निकपनिमित्तत्वात् । किं चान्यत् । अप्रमाणान्येव वा । कुतः । मिथ्यादर्शनपरिग्रहाद्विपरीतोपदेशाच्च । मिथ्यादृष्टेहि मतिश्रुतावधयो नियतमज्ञानमेवेति वक्ष्यते । नयवादान्तरेण तु यथा मतिश्रुतविकल्पजानि भवन्ति तथा परस्ताद्वक्ष्यामः ॥
विशेष व्याख्या-मति और श्रुत इन दोनोंसे अन्य अर्थात् भिन्न त्रिविध ज्ञान अर्थात् अवधि, मनःपर्य्यय, तथा केवल ये तीनों प्रत्यक्षप्रमाण हैं । क्योंकि ये तीनों अतीन्द्रिय ज्ञान हैं । जिनके द्वारा संपूर्ण पदार्थ प्रमाविषयीभूत किये जांय, अर्थात् साक्षात् अनुभवगोचर किये जाँय उनको प्रमाण कहते हैं । अब यहांपर कहते हैं कि इस शास्त्रमें अर्थात् जैनशास्त्रमें प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दो ही प्रमाण निश्चित किये हैं। और अनुमान, उपमान, आगम, (शब्द) अर्थापत्ति, संभव, तथा अभाव, इनको भी कोई २ अन्यमतवाले प्रमाणरूपसे मानते हैं, सो यह दोही प्रमाण आपने कैसे माने ? अर्थात् दो प्रमाणोंकी व्यवस्था असंगत प्रतीत होती है। अब यहांपर समाधान कहते हैं । इन्द्रियां तथा पदार्थोंके सन्निकर्षसे उत्पन्न होनेके कारण अनुमान उपमान आदि ये सब प्रमाण मति तथा श्रुत ज्ञान जो कि परोक्ष प्रमाणरूपसे कहे गये हैं उन्हीमें गतार्थ अर्थात् अन्तभूत हैं । अथवा अनुमान आदि सब अप्रमाण ही हैं। क्योंकि-इनमें मिथ्यादर्शनका परिग्रह है, और विपरीत उपदेश जन्य हैं । कारण यह कि मिथ्यादृष्टिके मति, श्रुत, और अवधिज्ञान, ये तीनों नियमसे अप्रमाण ही हैं ऐसा आगे कहेंगे । और यद्यपि अप्रमाण होनेसे मतिश्रुतमें अन्तर्भूत हैं यह कहनाभी अयोग्य है तथापि नयोंके वादसे, अर्थात् स्वरचितार्थप्रकाशनरूप जो नयवाद है उसके भेदसे मतिश्रुतके विकल्प(भेद ) जन्य जिसप्रकार प्रमाण होते हैं उसप्रकार आगे निरूपण करेंगे ॥ ११ ॥ __ अत्राह । उक्तं भवता मत्यादीनि ज्ञानानि उद्दिश्य तानि विधानतो लक्षणतश्च परस्ताद्विस्तरेण वक्ष्याम इति । तदुच्यतामिति । अत्रोच्यते ।
अब यहांपर कहते हैं कि-प्रथम आप (ग्रन्थकार ) ने मतिश्रुतादि पांचो ज्ञानोंको कहा और उनको लक्ष्य करके यह भी कहा कि इन ( मतिआदि ) को भेद तथा लक्षणपूर्वक आगे कहेंगे सो अब वही कहना चाहिये । इसलिये आगेका सूत्र कहते हैं
मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनान्तरम् ॥ १३ ॥ सूत्रार्थ:-मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध यह पर्यायवाचक शब्द माने गये हैं। भाष्यम्-मतिज्ञानं, स्मृतिज्ञानं, संज्ञाज्ञानं, चिन्ताज्ञानं, आभिनिबोधिकज्ञानमित्यनान्तरम् ॥
विशेष व्याख्या–मतिज्ञान, स्मृतिज्ञान, संज्ञाज्ञान, चिन्ताज्ञान, तथा आभिनिबोधिक ज्ञान ये पांचों एकार्थवाचक हैं ॥ १३ ॥
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