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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् प्राप्तावात्मनेपदी । तदेवं प्राप्यन्ते प्राप्नुवन्ति वा द्रव्याणि ॥ एवं सर्वेषामनादीनामादिमतां च जीवादीनां भावानां मोक्षान्तानां तत्त्वाधिगमार्थ न्यासः कार्य इति ॥
तथा अन्य पर्यायसे योभी कह सकते हैं कि, नामद्रव्य, स्थापनाद्रव्य, द्रव्यद्रव्य, तथा भावसे द्रव्य,। जैसे जीव वा अजीवका द्रव्य ऐसा नाम किया जाता है वह नामद्रव्य है । तथा जो काष्ठ, पुस्तक, चित्रकर्म, तथा अक्षनिक्षेप आदिमें द्रव्यरूपसे स्थापना की जाती है उसको स्थापनाद्रव्य कहते हैं । जैसे देवताओंकी प्रतिमाके तुल्य यह इन्द्रद्रव्य, यह रुद्ररूप तथा यह विष्णुरूप द्रव्य है । और द्रव्यद्रव्य, द्रव्यगुणपायोंसे रहित केवल प्रज्ञामात्रसे स्थापित धर्म आदिमेंसे किसी एकको जानना चाहिये. और कोई ऐसा भी कहते हैं कि, जो द्रव्यनिक्षेपसे द्रव्य होता है वह तो पुद्गलद्रव्यही है ऐसा निश्चय करना चाहिये. अणु और स्कन्ध, संघात भेदसे उत्पन्न होते हैं ऐसा आगे चलके कहेंगे । और भावसे द्रव्य, गुण, तथा पर्यायसहित, तथा प्राप्ति आदि लक्षणसंयुक्त धर्म आदि आगे निरूपण करेंगे । और आगमसेभी “प्राभृतज्ञ (जीव वा अजीव विधीका ज्ञाता) द्रव्य ही है" यह वचन भी भव्यको कहता है, क्योंकि 'द्रव्यं च भव्ये' 'भव्य अर्थमें द्रव्य यह निपात होता है' यहांपर भव्य यह शब्द भी प्राप्य अर्थको कहता है, क्योंकि आत्मनेपदमें भूधातु प्राप्तिरूप अर्थमें है । इस प्रकार गुणपर्याय आदिसे प्राप्त किये जांय अथवा स्वयं गुणादिको प्राप्त हों वे द्रव्य हैं। इस रीति अनादि वा आदिमान् संपूर्ण जीवआदि मोक्षान्तपदार्थोंके तत्त्वज्ञानार्थ न्यास अवश्य करना चाहिये।
प्रमाणनयैरधिगमः॥६॥ सूत्रार्थः—पूर्वकथित जीवादि तत्त्वोंका ज्ञान प्रमाण तथा नयोंके द्वारा होता है। भाष्यम्-एषां च जीवादीनां तत्त्वानां यथोद्दिष्टानां नामादिभिय॑स्तानां प्रमाणनयैर्विस्तराधिगमो भवति ।। तत्र प्रमाणं द्विविधम् परोक्षं प्रत्यक्षं च वक्ष्यते । चतुर्विधमित्येके । नयवादान्तरेण ।। नयाश्च नैगमादयो वक्ष्यन्ते ।। किं चान्यत् ।
विशेष व्याख्या-यथा क्रमसे संकीर्तित तथा नाम स्थापना आदि निक्षेप विधिसे उपन्यस्त जीवादि सप्त तत्त्वोंका ज्ञान प्रमाण तथा नयोंसे यथार्थ रूपसे होता है । उसमें परोक्ष तथा प्रत्यक्ष दो प्रकारका प्रमाण कहेंगे । और कोई प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, तथा उपमानरूप, नयवादसे चार प्रकारका प्रमाण कहते हैं। और नैगमसंग्रह आदि नय आगे कहेंगे ॥ ६॥ ___ और प्रमाण नयसे अन्य भी जीवादिके ज्ञानका उपाय है वा नहीं। सो अन्य भी है इसलिये आगेका सूत्र कहते हैं ।
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