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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् गम आगमो निमित्तं श्रवणं शिक्षा उपदेश इत्यनर्थान्तरम् । तदेवं परोपदेशाद्यत्तत्त्वार्थश्रद्धानं भवति तदधिगमसम्यग्दर्शनमिति ॥ विशेष व्याख्याः —यह सम्यग्दर्शन दो प्रकारका होता है, एक तो निसर्गजसम्यग्दर्शन, और दुसरा अधिगमजसम्यग्दर्शन, निसर्ग तथा अधिगम दो हेतुओंसे उत्पन्न होनेसे दो प्रकारका है। निसर्ग, परिणाम, स्वभाव, और दुसरेके उपदेशादिका अभाव, ये सब एकार्थवाचक, अर्थात् पर्यायशब्द हैं. ज्ञान तथा दर्शनरूप जो उपयोग है उस उपयोगसे युक्त होना यह जीवका लक्षण है वह आगे कहेंगे. उस जीवके अनादिकाल सिद्ध इस संसारमें कर्मसेही भ्रमण करते हुये निजकृतकर्महीका; नारक तिर्यग् मनुष्य तथा देव जन्म ग्रहणों में बन्ध निकाचन उदय तथा निर्जराकी अपेक्षा रखनेवाले अनेक प्रकारके पुण्य तथा पाप फलोंको अनुभव करते हुवे, उस जीवके ज्ञान तथा दर्शनरूप उपयोग स्वभावसे उन २ परिणाम अध्यवसाय तथा अन्य २ स्थानादिको प्राप्त होते हुवे अनादि कालसे मिथ्यादृष्टि होनेपरभी परिणामविशेष (कर्मोंका परिपाकतासे भावविशेष) से अपूर्व करण ऐसा होता है कि जिसके द्वारा विना किसीके उपदेश आदिके स्वयं किसी समयमें जो सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है वही निसर्गजसम्यग्दर्शन है । और अधिगम, अभिगम, आगम, निमित्त, श्रवण, शिक्षा, तथा उपदेश, ये सब समानार्थ कही हैं, इन अधिगम परोपदेशादिकेद्वारा जो तत्वार्थश्रद्धान उत्पन्न होता है वह अधिगमज सम्यग्दर्शन है ॥३॥ अत्राह । तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनमित्युक्तम् । तत्र किं तत्त्वमिति । अत्रोच्यते । अब यहांपर कहतेहैं कि, "तत्त्वरूप अर्थोंका जो श्रद्धान है वह सम्यग्दर्शन है" यहांपर तत्व शब्दसे किस २ का ग्रहण है! इस हेतुसे अग्रिम सूत्रका कथन है. ॥ ___जीवाजीवात्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥ ४ ॥ सूत्रार्थः-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, सम्वर, निर्जरा, तथा मोक्ष, ये सात तत्त्व हैं.। भाष्यम्-जीवा अजीवा आस्रवा बन्धः संवरो निर्जरा मोक्ष इत्येष सप्तविधोऽर्थस्तत्त्वम् । एते वा सप्त पदार्थास्तत्त्वानि । ताल्लक्षणतो विधानतश्च पुरस्ताद्विस्तरेणोपदेक्ष्यामः ॥ विशेष व्याख्या । जीव मनुष्यादि अजीव आकाश आदि आत्रव, बन्ध, संबर निर्जरा तथा मोक्ष इन सप्तभेदोसहित जो पदार्थ है वही तत्व है । अथवा ये जीव आदि सात पदार्थ तत्त्व हैं । उन सात प्रकारके तत्त्वरूप पदार्थोंको आगे लक्षण तथा भेद निरूपणपूर्वक विस्तारसे कहेंगे. ॥ ४ ॥ नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः ॥५॥ सूत्रार्थः-नाम, स्थापना, द्रव्य, तथा भाव इन अनुयोगोंसे जीव आदि सप्त तत्त्वोंका न्यास होता है.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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