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. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । महान् विषयोंसे युक्त, और अमित आगमोंके प्रमाणोंसे युक्त, तथा संसारसमुद्रसे पार उतारने और संपूर्ण दुःखोंके नाशके लिये समर्थ धर्म है उसका उपदेश दिया. ॥ १९ ॥ तथा यह धर्म अनेक ग्रंथोंके अर्थनिरूपणमें प्रवीण, और अति प्रयत्नशाली निपुण वादियोंसेभी वैसे अखण्डनीय है जैसे अन्य सब तेजोंसे सूर्य ॥२०॥ ऐसे पूर्वोक्त धर्मके प्रवर्तक परमऋषिस्वरूप मोहादिरहित, तथा सर्वपूज्य वीरभगवान् महावीरस्वामीको मैं ग्रंथकर्ता त्रिकरण (मन वचन तथा काया) की शुद्धिपूर्वक नमस्कार करके, ॥ २१ ॥ अधिक अर्थसे पूर्ण, और अल्पशब्दयुक्त इस तत्त्वार्थाधिगम नामक लघु ग्रंथको जो कि अर्हत् भगवान्के वचनोंकाही एक देश है, शिष्यजनोंके हितार्थ वर्णन करूंगा. ॥ २२ ॥ और महान् तथा महाविषयोंसे पूर्ण, और अपार, जिन भगवान्के वचनरूपी महासमुद्रका प्रत्यास (संग्रह) करनेको दुर्गमग्रंथभाषीभी कौन समर्थ होसक्ता है ? ॥ २३ ॥ जो मनुष्य अति विशाल गम्भीरार्थोंसे पूर्ण जिनवचनरूपी महासमुद्रका संपूर्णरूपसे संग्रह करनेकी इच्छा करता है वह मानो शिरसे पर्वतको तोडना चाहता है, पृथिवीको दोनों भुजाओंसे फेकना चाहता है, भुजाओंसे समुद्रको पार करना चाहता है, और उसी समुद्रका कुशाके अग्रभागसे थाह (पत्ता ) लेना चाहता है, आकाशमें उछलके चन्द्रमाको लंघन करना चाहता है, मेरुपर्वतको हाथसे कंपाना चाहता है, गतिमें वायुसेभी आगे जाना चाहता है, अन्तिम महासागरको पान करना चाहता है, और निजमूर्खताके कारण वह खद्योत (जुगन् वा आगियाकीडा) की दीप्तिसे सूर्यके तेजकोभी अभिभूत (पराजित) करना चाहता है. ॥ २४।२५।२६ ॥ जिनभगवान्के उपदेशवचनका एकभी पद अभ्यास करनेसे उत्तरोत्तर ज्ञानप्राप्तिद्वारा संसारसागरसे पार उतार देता है, क्योंकि केवल सामायिक मात्र पदसे अनंत सिद्ध होगये, ऐसा श्रवण करनेमें आता है. ॥ २७ ॥ इस हेतु, शास्त्रप्रमाणसे जिन भगवान्का वचन संक्षेपसे तथा विस्तारसे अभ्यस्त होनेसे कल्याण (मोक्ष) दायक है; इस कारण सन्देहरहित होकर जिनवाणीको ग्रहण करना चाहिये, उसके अनुसार धारण करना चाहिये, और दूसरोंको सुनानाभी चाहिये ॥ २८॥ हितवाक्यके श्रवणसे संपूर्ण श्रोताओंको सर्वथा धर्मसिद्धि नहीं होती, परन्तु अनुग्रहबुद्धिसे वक्ताको धर्मसिद्धि अवश्य होती है ॥ २९ ॥ इसकारण अपने श्रमका विचार न करके सदा मोक्षमार्गका उपदेश करना चाहिये, क्योंकि हितपदार्थोंका उपदेशदाता अपने तथा जिसको उपदेश देता है, दोनोंके ऊपर मानो अनुग्रह करता है ॥ ३० ॥ इस संपूर्ण संसारमें मोक्षमार्गके सिवाय अन्य कोई हितोपदेश नहीं है, इस हेतुसे सर्व श्रेष्ठ इसी मोक्षमार्गकाही कथन मैं करूंगा ॥ ३१ ॥ इति मोक्षमार्गप्रतिपादक तत्वार्थाधिगमसूत्रसम्बन्धप्रकाशकैकत्रिंशत्कारिकाः समाप्ताः ॥
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