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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् परचित्तज्ञानमभिलषितार्थप्राप्तिमनिष्टानवाप्तीत्येतदादि । वाचिकं क्षीरास्रवित्वं मध्वास्रवित्वं वादित्वं सर्वरुतज्ञत्वं सर्वसत्त्वावबोधनमित्येतदादि । तथा विद्याधरत्वमाशीविषत्वं भिन्नाभिन्नाक्षरचतुर्दशपूर्वधरत्वमिति ॥
आमर्श-औषधत्व ( विचार मात्रसे औषधादि प्रयोग सामर्थ्य ), विषय-औषधत्व (जलबिन्दुमात्रसे व्याधिनाशसामर्थ्य), शाप तथा अनुग्रह (आशीर्वाद)को उत्पन्न करनेवाली वचनकी सिद्धि, ईशित्व (ऐश्वर्यवत्ता ), अणिमा लघिमा, महिमा, तथा अणुत्व इत्यादि सिद्धि प्राप्त होती हैं । इनमें कमलके सूत्रके छिद्रमें भी प्रवेश करके स्थित होसके इस प्रकारका अणिमा (छोटापन ) है। लघुत्वको लघिमा कहते हैं, जैसे वायुसे भी लघुतर हो जाय अर्थात् अति हलकापनका सामर्थ्य लघिमा सिद्धि है । महिमा अर्थात् मेरु पर्वतसे भी अधिक बड़ा शरीर करसके, यह महिमा ऋद्धि है । प्राप्ति, पृथिवीपर स्थित होकर अङ्गुलीके अग्रभागसे मेरुके शिखर तथा सूर्य आदिको भी स्पर्श कर (छू ) सकै अर्थात् सर्वत्र प्राप्त होनेका सामर्थ्य यह प्राप्ति नामक सिद्धि है । प्राकाम्य-पृथिवीके समान जल. में भी पैरोंसे चल सकना, और जलके समान पृथिवीपर भी जब चाहै तब डूब जाय, और जब चाहै तब उतराने लगजाय, यह सामर्थ्य अर्थात् इच्छा वा कामनाके अनुसार कार्य करनेका सामर्थ्य प्राकाम्य है । जङ्घाचारणत्व-जिसके द्वारा अग्निकी शिखा, धूम, कुहिरा, जलकी धारा, मर्कटी अर्थात् मकरीके सूत ( जाला ) वा किसी ज्योतिर्मय पदार्थके किरण, तथा वायु, इनमेंसे किसीको ग्रहण करके अर्थात् अग्निशिखा धूम आदिमेंसे किसीके आधारसे आकाशमें गमन कर सकता है । और आकाशगतिचारणता कि जिससे आकाशमें भूमिके तुल्य गमन करै, और पक्षीके समान ऊपर उड़ना तथा नीचे उतरना आदि विशेष प्रकारके गमन आगमन करे । तथा अप्रतिघातित्व (किसी पदार्थसे प्रतिघात-राहित्य अर्थात् अवरोधका सर्वथा अभाव, जिसके द्वारा पर्वतके मध्यमें भी अवकाशसहित आकाशके सदृश चल सकता है । अन्तर्धानत्व, जिसके द्वारा लोगोंकी दृष्टिसे अदृश्य हो सकता अर्थात् लोप हो ( छिप जा ) ता है । कामरूपित्व, अर्थात् अपनी इच्छाके अनुसार रूप धारण करनेका सामर्थ्य; जिससे कि एकही कालमें नाना प्रकारके आश्रयसे अनेक रूप यह योगी धारण कर सकता है। तथा तेजोनिसर्गसामर्थ्य, विशेष तेज उत्पन्न करनेकी शक्ति, इत्यादि सिद्धयां प्राप्त होती हैं। तथा इद्रियों के विषयमें मतिज्ञानकी विशुद्धिकी विशेषता ( विलक्षणता वा विचित्रता ) से दूरसेही स्पर्शन, आस्वादन, घ्राण ( सूंघना ), दर्शन ( देखना ) और श्रवण (सुनना) आदि विषयोंको अनुभव कर सकता है । संभिन्नज्ञानत्व, एक कालमेंही पृथक् २ अनेक विषयोंका परिज्ञान प्राप्त करना, इत्यादि ।
और मानस कोष्ठबुद्धित्व बीजबुद्धित्व तथा पद, प्रकरण, उद्देश, अध्याय, प्राभृत, वस्तु पूर्वाङ्गाऽनुसारिता, ऋजुमतित्व, विपुलमतित्व, परचित्तज्ञान (दूसरेके चित्तके अभिप्राय
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