________________
१७२
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् धान है । २ । यह पदार्थ पराया अर्थात् अन्य मनुष्यका है, यह परव्यपदेश है । ३ । मात्सर्य अर्थात् अन्य देहीके गुण आदिसे ईर्ष्या करना यह मात्सर्यनामा चौथा अतीचार है । ४ । तथा दानआदिके समयका उल्लघंन करना यह कालातिक्रमनामा अतिथिसंविभागवतका पश्चम अतिचार है । ५॥ ३१ ॥
जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानकरणानि ॥ ३२॥
सूत्रार्थ-जीवितानुशंसा १ मरणानुशंसा २ मित्रानुराग ३ सुखानुबन्ध ४ तथा निदानकरण ५ ये पांच मारणान्तिकी संलेखनाके अतिचार हैं ॥ ३२ ॥ __ भाष्यम्-जीविताशंसा मरणाशंसा मित्रानुरागः सुखानुबन्धो निदानकरणमित्येते मारणान्तिकसंलेखनायाः पश्चातिचारा भवन्ति ॥
विशेषव्याख्या-जीवनकी आशंसा (अभिलाषा) यह जीवितानुशंसा १ तथा मृत्युकी आशंसा यह मरणानुशंसा २ मित्रोंमें प्रीति यह मित्रानुराग ३ है । सुखका सम्बन्ध रखना अथवा सुखका स्मरण करना यह सुखाऽनुबन्ध ४ है । आगामी विषयभोगोंकी आकांक्षा करना निदानकरण ५ पञ्चम अतिचार है ॥ तदेतेषु सम्यक्त्वव्रतशीलव्यतिक्रमस्थानेषु पञ्चषष्टिष्वतिचारस्थानेषु अप्रमादो न्याय इति।
इन अतिचारोंसे व्रत तथा शीलोंकी पूर्णता नहीं होती, इस हेतुसे सम्यक्त्व व्रत तथा शीलके व्यतिक्रम स्थान जो पूर्वकथित पैंसठ (६५) अतिचार स्थान हैं उनमें अप्रमाद करना चाहिये । अर्थात् प्रमादसे ये अतिचार न होने देने चाहिये ॥ ३२ ॥
अत्राह । उक्तानि व्रतानि वतिनश्च । अथ दानं किमिति । अत्रोच्यते
अब यहांपर कहते हैं कि व्रत तथा व्रतियोंका निरूपण किया। अब दान क्या है ? इसके लिये यह अग्रिम सूत्र कहते हैं
. अनुग्रहार्थ खस्यातिसर्गो दानम् ॥ ३३ ॥ सूत्रार्थ—अनुग्रहार्थ अपनी वस्तुका त्याग करना दान कहलाता है । आत्मपरानुग्रहार्थ स्वस्य द्रव्यजातस्यान्नपानवस्त्रादेः पात्रेऽतिसर्गो दानम् । विशेषव्याख्या-अपने तथा अन्यके ऊपर अनुग्रह (अनुकम्पा )के अर्थ जो निजद्रव्यसमूह, अन्नपान, तथा वस्त्रआदि पदार्थों का पात्रोंमें त्याग है उसको दान कहते हैं ३३ किं चऔर इसके विषयमें यह विशेषता भी कही है--
विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तविशेषः ॥ ३४॥ सूत्रार्थ-विधि, द्रव्य, दाता, तथा पात्र, इनके विशेषसे दोनोंकी विशेषता होती है ॥ ३४ ॥
भाष्यम्-विधिविशेषाद् द्रव्यविशेषाद् दातृविशेषात्पात्रविशेषाञ्च तस्य दानधर्मस्य वि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org