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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । भाष्यम्-एते पञ्च मिथ्योपदेशादयः सत्यवचनस्यातिचारा भवन्ति । तत्र मिथ्योपदेशो नाम प्रमत्तवचनमयथार्थवचनोपदेशो विवादेष्वतिसंधानोपदेश इत्येवमादिः ॥ रहस्याभ्याख्यानं नाम स्त्रीपुंसयोः परस्परेणान्यस्य वा रागसंयुक्तं हास्यक्रीडासङ्गादिभी रहस्येनाभिशंसनम् ॥ कूटलेखंक्रिया लोकप्रतीता ॥ न्यासापहारो विस्मरणकृतपरनिक्षेपग्रहणम् ॥ साकारमत्रभेदः पैशुन्यं गुह्यमन्त्रभेदश्च ।।
विशेषव्याख्या-मिथ्या उपदेश, आदि सत्यभाषणव्रतके पांच अतीचार अर्थात् व्यतिक्रम वा स्खलन हैं । जैसे–प्रमत्तवचन, अयथार्थवचनका उपदेश, तथा विवादोंमें अतिसन्धान अर्थात् सन्धान ( सम्बन्ध )को उलंघनकरके अर्थात् असम्बद्ध वा प्रकरणविरुद्ध जो उपदेश है इत्यादि सब मिथ्या उपदेश हैं। रहस्याभ्याख्यान-अर्थात् स्त्री पुरुषका परस्परके द्वारा अथवा अन्य किसीके रागसंयुक्त विषयको हास्य क्रीडाआदिसे रहस्यरूपसे जो कथन है वह रहस्याभ्याख्यान है । कूटलेखक्रिया-संसारमें प्रसिद्ध ही है । अर्थात् मिथ्या लेख वा जाली तमस्सुकआदि बनाना, यह सब कूटलेखक्रिया है । न्यासापहार-विस्मरण आदिके द्वारा धरोहररूपसे स्थापित पदार्थको हरलेना, यह न्यासापहार है । साकारमत्रभेद-पैशुन्य (चुगली करना) और गुह्यमन्त्र (सलाह) का भेद करना ( भंडाफोड़ करना) है । ये सब सत्यभाषणव्रतके व्यतिक्रम हैं ॥ _स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥ २२॥
सूत्रार्थ-स्तेनप्रयोग, तदाहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिकमानोन्मानादि, तथा प्रतिरूपकव्यवहार, ये पांचो अस्तेय ( अचौर्य )व्रतके अतीचार हैं ॥ २२ ॥
भाष्यम्-एते पञ्चास्तेयव्रतस्यातिचारा भवन्ति । तत्र स्तेनेषु हिरण्यादिप्रयोगः ॥ स्तेनैराहतस्य द्रव्यस्य मुधा क्रयेण वा ग्रहणं तदाहृतादानम् ॥ विरुद्धराज्यातिक्रमश्वास्तेयव्रतस्यातिचारः । विरुद्ध हि राज्ये सर्वमेव स्तेययुक्तमादानं भवति ॥ हीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहारः कूटतुलाकूटमानवञ्चनादियुक्तः क्रयो विक्रयो वृद्धिप्रयोगश्च । प्रतिरूपकव्यवहारो नाम सुवर्णरूप्यादीनां द्रव्याणां प्रतिरूपकक्रिया व्याजीकरणानि चेत्येते पञ्चास्तेयव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥
विशेषव्याख्या-स्तेनप्रयोगआदि अस्तेय व्रतके अतीचार हैं। उनमें चोरोंमें सुवर्णआदिका लेन देन करना, यह स्तेनप्रयोग है । तथा चोरोंसे लाया हुआ जो द्रव्य है उसको यों ही वा अल्प मूल्यसे लेलेना, यह तदाहृतादान है । तथा विरुद्ध राज्यमें अतिक्रम करना, अर्थात् विरुद्ध राज्यमें क्रमका उल्लंघन करना । क्योंकि-विरुद्ध राज्यमें सब स्तेययुक्त ही ग्रहणआदि होता है । तथा हीनाधिकमानोन्मानादि यह हैं कि कूटतुला अर्थात् मिथ्या ( झूठी ) तराजूसे कपटपूर्वक माप, वञ्चना (धोखा) आदिसे युक्त, क्रय विक्रय व्यवहार, अर्थात् झूठी तराजूसे, झूठे मापसे, तोलसे, दूसरोंको धोखा
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