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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् हिताहितकी परीक्षा नहीं है ऐसे ) हों अथवा वैनयिक अर्थात् सम्पूर्ण देव तथा सम्पूर्ण शास्त्रोंको समान माननेवाले हों, उनकी प्रशंसा तथा संस्तव करना । ये प्रशंसा तथा संस्तव दोनो सम्यग्दृष्टिके अतीचार हैं । अब यहां प्रश्न करते हैं कि-प्रशंसा तथा संस्तव ( स्तुति ) इन दोनोंमें क्या भेद है ? इस शंकाका उत्तर कहते हैं कि-भावसे ज्ञानदर्शन गुणकी प्रकर्षता ( उच्चता वा अधिकता)का जो उद्भावन अर्थात् सबपर प्रकट करना है, यह तो प्रशंसा है । और सोपध वा निरुपध वा भूत और अभूत अर्थात् यथार्थ वा अयथार्थ गुणोंका जो संकीर्तन है वह संस्तव अर्थात् संस्तुति है । ये शंकाआदि पांचों सम्यग्दृष्टि जनके अती चार अर्थात् व्यतिक्रम हैं ॥ १८ ॥ इस अग्रिम सूत्रसे व्रत तथा शीलोंके अतीचारोंकी संख्या ( गिनती ) कहते हैं
व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् ॥ १९॥ सूत्रार्थ-अहिंसाआदि पांच (५) व्रतोंमें और दिग्वतआदि सात (७) शीलोंमें भी पांच (५) २ अतिचार होते हैं ॥ १० ॥ ___ भाष्यम्-व्रतेषु पञ्चसु शीलेषु च सप्तसु पञ्च पञ्चातीचारा भवन्ति यथाक्रममिति ऊर्वं यद्वक्ष्यामः । तद्यथा
विशेषव्याख्या-अहिंसाआदि व्रतोंके तथा दिग्वतआदि शीलोंके पांच २ अतीचारोंको अर्थात् प्रथम अहिंसाआदि व्रतोंके और पीछे दिग्वतआदि शीलोंके पांच २ अतीचारोंको हम आगे कहेंगे ॥ जैसे. बन्धवधविच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः ॥२०॥
सूत्रार्थ-बन्ध, वध, छेद, अतिभारारोपण, अन्नपाननिरोध ये पांच अहिंसाव्रतके अतिचार हैं ॥ २० ॥
भाष्यम् -त्रसस्थावराणां जीवानां बन्धवधौ त्वक्छेदः काष्ठादीनां पुरुषहस्त्यश्वगोमहिषादीनां चातिभारारोपणं तेषामेव चानपाननिरोधः अहिंसाव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥
विशेषव्याख्या-त्रस तथा स्थावर जो जीव हैं उनका वध १ तथा बन्धन २, तथा काष्ठआदिकी त्वक् (छाल आदि )का छेदन ३, पुरुष, हस्ती ( हाथी), अश्व, गौ तथा महिष (भैंस )आदिके ऊपर अतिभार अर्थात् उचितसे अधिक भारका आरोपण ( लादना ) ४ और उन्हीके अर्थात् पुरुष, हस्ती, अश्व आदिके अन्नपानआदि आहारका निरोध करना ( रोकना) ५, ये पांचो अहिंसावतके अतिचार हैं ॥ २० ॥
मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥२१॥
सूत्रार्थ-मिथ्या उपदेश, रहस्याभ्याख्यान (गोप्य वार्ताओंका प्रकट करना), कूटलेखक्रिया, न्यासापहार तथा साकारमंत्रभेद, ये पांचों सत्य व्रतके अतीचार हैं ॥२१॥
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