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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् देकर न्यून ( कम ) देना और अधिक लेना । तथा हीनाधिक परिमाणसे वृद्धि करना । और प्रतिरूपकव्यवहार यह है कि-सुवर्ण तथा रूप्य (रूपा-चांदी) आदि द्रव्योंकी प्रतिरूपकक्रिया, अर्थात् सोने चांदीके समान ( मुलम्मेआदि अन्य )द्रव्योंको बनालेना तथा अन्य प्रकारके कपट व्यवहार करनेको भी प्रतिरूपक क्रिया कहते हैं । ये स्तेनप्रयोगआदि पांच अस्तेय व्रतके अतीचार हैं ॥ २२ ॥
परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडातीव्रका- माभिनिवेशाः॥ २३ ॥
सूत्रार्थ-परविवाहकरणादि ब्रह्मचर्य व्रतके अतीचार हैं । अर्थात् परविवाहकरण. १ व्यभिचारिणी वा दूसरेकी विवाहितासे संग करना २ जिसका विवाह नहीं हुआ हो ऐसी कन्याआदिसे गमन करना ३ अयोग्य अङ्गसे क्रीडा करना ४ कामके वेगका तीव्र होना यह पांच (५) ब्रह्मचर्य व्रतके अतीचार हैं ॥ २३ ॥
भाष्यम्-परविवाहकरणमित्वरपरिगृहीतागमनमपरिगृहीतागमनमनङ्गक्रीडा तीव्रकामाभिनिवेश इत्येते पञ्च ब्रह्मचर्यव्रतस्यातिचारा भवन्ति ।
विशेषव्याख्या---परविवाहकरण, अन्यकी विवाहिता कुलटा स्त्रीसे गमन करना, अपरिगृहीता ( अविवाहिता कुमारी या वेश्याआदि) स्त्रियोंके साथ गमन करना, अनङ्गक्रीडा अर्थात् अङ्गोंसे भिन्न अङ्गोंमें क्रीडा करना, अतितीव्र कामनाका अभिनिवेश (वेग) अर्थात् अत्यन्त कामी होना; ये पांच ब्रह्मचर्य व्रतके अतीचार हैं ॥ २३ ॥
क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः॥२४
सूत्रार्थ-क्षेत्र, वास्तु, हिरण्यआदि वस्तुओंके प्रमाणका अतिक्रम करना, इत्यादि पांच इच्छापरिमाण वा अपरिग्रह व्रतके अतिचार हैं ॥ २४ ॥
भाष्यम्-क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रमः हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रमः धनधान्यप्रमाणातिक्रमः दासीदासप्रमाणातिक्रमः कुप्यप्रमाणातिक्रम इत्येते पञ्चेच्छापरिमाणवतस्यातिचारा भवन्ति ।
विशेषव्याख्या-क्षेत्र, वास्तु, खेत तथा गृहको प्रमाणसे अधिक संग्रह करना १ हिरण्य सुवर्णआदि वस्तुओंको प्रमाणसे अधिक संग्रह करना २ धन, धान्य व अन्य प्रकारके धन तथा अन्न वृक्षादिका प्रमाणसे अधिक संग्रह करना, ३ दासी दासआदिको प्रमाणसे अधिक नियत करना ४ और कुप्य अर्थात् भाण्ड वर्तनादि पदार्थोंको प्रमाणसे अधिक संग्रह करना ५ ये पांचो इच्छापरिमाण वा अपरिग्रह व्रतके अतिचार हैं ॥२४॥
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि ॥ २५॥ सूत्रार्थ—ऊर्ध्वव्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि तथा स्मृतिका अन्तर्धान, ये पांचों दिग्वतादि (शील )के अतिचार हैं ॥ २५ ॥
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