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________________ १६४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् उपभोगपरिभोगव्रत वह है कि-जिसमें भोजन, पानआदि खाद्य पदार्थोंका, खाद्य अर्थात् प्रिय आनन्ददायक गन्धमाल्य आदि पदार्थोंका, आच्छादन ( वस्त्रादि ) अलकार, शय्या, आसन, गृह, यान (सवारी घोड़े हाथी बग्गीआदि), वाहन बैलआदि पदार्थोंका जो कि-बहुत सावध हैं अर्थात् निन्दादोषादिसहित हैं उन सबका त्याग करना । और इन भोजन, पान, गन्धमाल्य, वस्त्र, अलङ्कार, शय्या, गृह यानादिमेंसे जो अल्पदोषादियुक्त हैं उनका भी परिमाण करना कि-इतनेसे अधिक नहीं रक्खेंगे, अर्थात् अल्प दोषवालोंमें भी आवश्यक पदार्थोंकी गणना करके वर्तावमें लाना, यह उपभोगपरिभोगव्रत है । अथितिसंविभागवत वह है कि-न्यायसे प्राप्त अर्थात् धर्मसे उपार्जित कल्पनीय (सम्पादन ) करनेके योग्य जो द्रव्य हैं उनका देश, काल, श्रद्धा तथा सत्कारके क्रमसे युक्त होकर अतिअनुग्रहबुद्धिसे संयत अर्थात् संयमी पुरुषोंको देना, ये सात व्रतभी अगारी व्रतीके होते हैं ॥ १६ ॥ किं चान्यदिति । और यहभी है;-.. मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥१७॥ सूत्रार्थ-व्रती (अगारी व्रती ) मारणान्तिकी अर्थात् मरणसमयकी संलेखनाका जोषिता अर्थात् सेवी होना चाहिये ॥ १७॥ . भाष्यम्-कालसंहननदौर्बल्योपसर्गदोषाद्धर्मावश्यकपरिहाणिं वाभितो ज्ञात्वावमौदर्यचतुर्थषष्ठाष्टमभक्तादिभिरात्मानं संलिख्य संयमं प्रतिपद्योत्तमव्रतसंपन्नश्चतुर्विधाहारं प्रत्याख्याय यावज्जीवं भावनानुप्रेक्षापरः स्मृतिसमाधिबहुलो मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता उत्तमार्थस्याराधको भवतीति ।। विशेषव्याख्या-काल, संहनन (शरीरकी स्थितिविशेष), दुर्बलता तथा उपसर्ग ( पीडाआदि उपद्रवों )के दोषसे आवश्यक कार्यकी परिहाणिको सब ओरसे जानकर अवमौदर्य, ( अल्प अशन ), चतुर्थ, षष्ठ, तथा अष्टम कालमें भक्त (भात )आदिके द्वारा आत्माको नियममें लाके संयममें प्राप्त होके उत्तम व्रतसम्पन्न हो, चारों प्रकारके आहारोंको त्यागकर, जीवनपर्यन्त भावना तथा अनुपेक्षामें तत्पर स्मरण तथा समाधिमें बहुधा परायण होके, मरण समयकी संलेखनाका सेवी उत्तम अर्थका आराधक होता है । ___ एतानि दिग्व्रतादीनि शीलानि भवन्ति । निःशल्यो व्रतीति वचनादुक्तं भवति व्रती नियतं सम्यग्दृष्टिरिति ॥ ये जो दिग्वतादि कहे हैं वे सब शीलसंज्ञक हैं । निःशल्य व्रती होता है इस वचनसे यह सिद्ध है कि-व्रती नियमसे सम्यग्दृष्टिवाला होता है । Jain Education International . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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