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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पञ्च पञ्च ॥ ३॥ सूत्रार्थ-उन व्रतोंकी स्थिरताके निमित्त प्रत्येककी पांच २ भावना करनी चाहिये। भाप्यम्-तस्य पञ्चविधस्य व्रतस्य स्थैर्यार्थमेकैकस्य पञ्च पञ्च भावना भवन्ति । तद्यथाअहिंसायास्तावदीर्यासमितिर्मनोगुप्तिरेषणासमितिरादाननिक्षेपणसमितिरालोकितपानभोजनमिति ॥ सत्यवचनस्यानुवीचिभाषणं क्रोधप्रत्याख्यानं लोभप्रत्याख्यानमभीरुत्वं हास्यप्रत्याख्यानमिति ॥ अस्तेयस्यानुवीच्यवग्रहयाचनमभीक्ष्णावग्रहयाचनमेतावदित्यवग्रहावधारणं समानधार्मिकेभ्योऽवग्रहयाचनमनुज्ञापितपानभोजनमिति ॥ ब्रह्मचर्यस्य स्त्रीपशुषण्डकसंसक्तशयनासनवर्जनं रागसंयुक्तस्त्रीकथावर्जनं स्त्रीणां मनोहरेन्द्रियालोकनवर्जनं पूर्वरतानुस्मरणवर्जनं प्रणीतरसभोजनवर्जनमिति ॥ आकिञ्चनस्य पञ्चानामिन्द्रियार्थानां स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दानां मनोज्ञानां प्राप्तौ गायवर्जनममनोज्ञानां प्राप्तौ द्वेषवर्जनमिति ॥ किं चान्यदिति ।
विशेषव्याख्या-वह जो अहिंसा आदि पांच प्रकारके व्रत कहे हैं, उनकी स्थिरता अर्थात् दृढताके अर्थ प्रत्येक व्रतकी पांच २ प्रकारकी भावना करनी चाहिये । जैसे-प्रथम अहिंसा व्रतकी स्थिरताके अर्थ ई-समिति १ मनोगुप्ति २एषणासमिति ३,आदान-निक्षेपणसमिति, ४ और आलोकितपानभोजन ५, तथा सत्य व्रतकी स्थिरताके लिये अनुवीचिभाषण (अनिंद्यभाषण )१ क्रोधप्रत्याख्यान (क्रोधका त्याग) २ लोभप्रत्याख्यान (लोभका त्याग) ३ अभीरुत्व अर्थात् भयका अभाव ४ और हास्यका प्रत्याख्यान ( अभाव ) ५ । अचौर्य व्रतके स्थैर्यके लिये भी अनुवीचि-अवग्रह-याचन (अनिंद्य पदार्थका ग्रहण तथा याचन ) १ निरंतर अनिंद्य याचन २ इतना ही हमारे लिये पर्याप्त होगा इस प्रकारके विचारपूर्वक पदार्थोंका ग्रहण ३ समानधर्मियोंसे ही अवग्रहयाचन ४, और अनुज्ञापित (आज्ञा दिए हुए पदार्थोंका) पान तथा भोजन ५, तथा ब्रह्मचर्य व्रतकी स्थिरताके लिये स्त्री, पशु और नपुंसकके संबंध वा संपर्कवाले शयन, शय्या आदि और आसनका वर्जन १ रागयुक्त स्त्रियोंकी कथाका वर्जन (निषेध) २ स्त्रियोंके मनोहर अङ्गोंके दर्शनका निषेध ३ पूर्वकालमें किये हुए स्त्रीप्रसंग आदिके स्मरणका निषेध ४ तथा अतिपुष्टिकारक वा कामोत्पादक भोजनका निषेध (अभाव) ५ तथा अकिंचन अर्थात् अपरिग्रहव्रतकी स्थिरताके अर्थ पाँचो इंद्रियोंके जो अर्थ (विषय) स्पर्श, रस, गंध, वर्ण तथा शब्द हैं; वे यदि मनोज्ञ (अपनेको इष्ट वा अभिलषित) प्राप्त हों तब तो गार्य अर्थात् लोलुपता वा लुब्धताका वर्जन और यदि अमनोज्ञ (अनिष्ट) प्राप्त हों तब द्वेषका वर्जन अर्थात् निषेधरूपसे भावना न करनी । इस रीति पांचो व्रतोंकी दृढताके लिये प्रत्येकके अर्थ पांच २ भावना दर्शाई गईं ॥ ३ ॥ और भी
हिंसादिष्विहामुत्र चापायावद्यदर्शनम् ॥४॥
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