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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । अत्राह । उक्तं भवता बन्धे समाधिको पारिणामिकौ इति तत्र कः परिणाम इति । अत्रोच्यते
अब यहां कहते हैं कि आपने प्रथम यह कहा है कि बन्ध होनेपर समान गुणवालेका समान गुण परिणाम होता है, और हीन गुणका अधिक गुण परिणाम होता है (अ. ५ सू. ३६) । सो परिणाम क्या वस्तु है ? । इसके उत्तरमें अग्रिम सूत्र कहते हैं
. तद्भावः परिणामः॥४१॥ सूत्रार्थ-वस्तुका जो भाव अर्थात् स्वभाव वही परिणाम है। भाष्यम्-धर्मादीनां द्रव्याणां यथोक्तानां च गुणानां स्वभावः स्वतत्त्वं परिणामः ।
विशेषव्याख्या-पूर्व प्रसंगमें यथोक्त जो धर्म अधर्म आदि द्रव्य हैं उनका स्वभाव तथा गुणोंका स्वभाव अर्थात् निजतत्त्व वही परिणाम है ॥ ४१ ॥
स द्विविधः। वह परिणाम दो प्रकारका है । जैसे--
अनादिरादिमांश्च ॥ ४२ ॥ भाष्यम्-तत्रानादिररूपिषु धर्माधर्माकाशजीवेष्विति ।
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या--अनादि तथा आदिमान् दो प्रकारका परिणाम है । उनमें अनादि परिणाम तो अरूपी द्रव्य जो धर्म, अधर्म, अकाश तथा जीव हैं उनमेंही होता है ॥ ४२ ॥
रूपिष्वादिमान् ॥ ४३ ॥ भाष्यम्-रूपिषु तु द्रव्येषु आदिमान । परिणामोऽनेकविधः स्पर्शपरिणामादिरिति ॥
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्याः -रूपी जो द्रव्य हैं, अर्थात् श्वेत, कृष्ण और नील आदि रूपवाले जो द्रव्य हैं, उनमें आदिमान् ( सादि) परिणाम होता है । और वह आदिमान् परिणाम अनेक प्रकारका होता है । जैसे-स्पर्श परिणाम, रस परिणाम और गंध परिणाम, इत्यादि ॥ ४३ ॥
योगोपयोगी जीवेषु ॥४४॥ सूत्रार्थ-जीव यद्यपि अरूपी द्रव्य हैं, तथापि उनमें योग और उपयोग ये आदिमान् परिणाम होते हैं।
भाष्यम्-जीवेष्वरूपिष्वपि सत्सु योगोपयोगौ परिणामावादिमन्तौ भवतः । तत्रोपयोगः पूर्वोक्तः । योगस्तु परस्तावक्ष्यते
___इति तत्त्वार्थाधिगमेऽहत्प्रवचनसङ्ग्रहे पञ्चमोऽध्यायः समाप्तः ॥ ५ ॥ विशेषव्याख्याः -अरूपी द्रव्योंमें अनादि परिणाम कहा है (अ. ५ सू. ४२)। उसका यह अपवाद वा विशेष वचन है कि जीवोंके अरूपी द्रव्य होनेपरभी उनमें आ
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