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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
safaaiदिगुणानां तु ॥ ३५ ॥
सूत्रार्थ– द्विगुण आदिसे अधिक गुणवाले सदृश पदार्थोंकाभी बन्ध होता है ।
भाष्यम् – व्यधिकादिगुणानां तु सदृशानां बन्धो भवति । तद्यथा - स्निग्धस्य द्विगुणाद्यधिकस्निग्धेन । द्विगुणाद्यधिकस्निग्धस्य स्निग्धेन । रूक्षस्यापि द्विगुणाद्यधिकरूक्षेण । द्विगुणाद्यधिकरूक्षस्य रूक्षेण । एकादिगुणाधिकयोस्तु सदृशयोर्बन्धो न भवति । अत्र तुशब्दो व्यावृत्तिविशेषणार्थः प्रतिषेधं व्यावर्तयति बन्धं च विशेषयति ॥
विशेषव्याख्या - अब इस विषयको कहते हैं कि रूक्षका रूक्षके साथ, और स्त्रिग्धका स्निग्धके साथभी बन्ध होता है किन्तु रूक्ष तथा स्निग्ध गुणोंकी इस प्रकारसे विषमता होनी चाहिये । जैसे- स्निग्धका अर्थात् सामान्य स्निग्धका द्विगुण आदि अधिक स्निग्धके साथ बन्ध होता है । तथा द्विगुण आदि अधिक स्निग्धका सामान्य स्निग्धके साथ बन्ध होता है; ऐसेही रूक्षका द्विगुण आदि अधिक रूक्षके साथ बन्ध होता है; तथा द्विगुण आदि अधिक रूक्षका सामान्य रूक्षके साथभी बन्ध होता है । तात्पर्य ह कि सामान्य स्निग्ध पदार्थका उससे द्विगुण स्निग्धके साथ बन्ध होजाता है । जैसे - जमे घृतका पिघले घृतके साथ तथा आटेका गुड वा चीनीके साथ । परन्तु यह वैषम्य द्विगुण आदिसे अधिक होना चाहिये । और एक द्विगुण अधिक सदृश पदार्थोंका बन्ध नहीं होता । इस सूत्र में “ द्व्यधिकादिगुणानान्तु” यहां जो 'तु' शब्द पठित है वह व्यावृत्ति तथा विशेषणके लिये है । अर्थात् " न जघन्यगुणानां " वा " गुणसाम्ये सहशानां” इत्याकारक प्रतिषेधकी तो व्यावृत्ति करता है और बन्धको विशेषित करता है ॥३५॥
अत्राह । परमाणुषु स्कन्धेषु च ये स्पर्शादयो गुणास्ते किं व्यवस्थितास्तेष्वाहोस्विदव्यवस्थिता इति । अत्रोच्यते । अव्यवस्थिताः । कुतः । परिणामात् ॥
अब यहां कहते हैं कि परमाणुओंके तथा स्कन्धों के जो स्पर्श रस आदि गुण प्रथम कहे हैं वे उनमें व्यवस्थित रूपसे रहते हैं अथवा अव्यवस्थित रूपसे हैं ? | इसपर कहते हैं कि वे स्पर्शरसादि अव्यवस्थितही रहते हैं । क्योंकि वे परिणामसे होते हैं ।
अत्राह । द्वयोरपि बध्यमानयोर्गुणवत्त्वे सति कथं परिणामो भवतीति उच्यते
अब कहते हैं कि यदि बध्यमान ( जिनका बन्ध हो रहा है वे ) दोनों पदार्थ गुणवान् हैं तो कैसे परिणाम होता है ? इसपर कहते हैं
बन्धे समाधिकौ पारिणामिकौ ॥ ३६ ॥
भाष्यम् – बन्धे सति समगुणस्य समगुणः परिणामको भवति । अधिकगुणो हीनस्येति ॥ विशेषव्याख्या—बन्ध होनेपर यदि सम गुण है तब तो समगुणका समगुणवालाही परिणाम होगा और हीन गुणका अधिक गुणवान् परिणाम होगा ॥ ३६ ॥
अत्राह । उक्तं भवता द्रव्याणि जीवाश्चेति । तत्किमुद्देशत एव द्रव्याणां प्रसिद्धिराहोस्विलक्षणतोऽपीति । अत्रोच्यते । लक्षणतोऽपि प्रसिद्धिः । तदुच्यते
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