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________________ १३८ : रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ___ अब कहते हैं क्या यह स्पृष्ट स्निग्ध रूक्ष पुद्गलोंका बन्ध एकान्ततः अर्थात् नियमसे सदा सब पुद्गलोंका होता है अथवा नहीं ? । इसपर यह आगेका सूत्र कहते हैं न जघन्यगुणानाम् ॥ ३३॥ सूत्रार्थ:-जघन्यगुणयुक्त स्निग्ध तथा जघन्यगुणयुक्त रूक्ष पुद्गलोंका स्पर्श होनेपरभी बन्ध नहीं होता ॥ भाष्यम्-जघन्यगुणस्निग्धानां जघन्यगुणरूक्षाणां च परस्परेण बन्धो न भवतीति ।। विशेषव्याख्या-जघन्यगुणवाले स्निग्ध वा जघन्यगुणवाले रूक्ष पुद्गलोंका परस्पर बन्ध नहीं होता ॥ ३३ ॥ अत्राह । उक्तं भवता जघन्यगुणवर्जानां स्निग्धानां रूक्षेण रूक्षाणां च स्निग्धेन सह बन्धो भवतीति । अथ तुल्यगुणयोः किमत्यन्तप्रतिषेध इति । अत्रोच्यते । न जघन्यगुणानामित्यधिकृत्येदमुच्यते__ अब यहांपर कहते हैं कि जघन्यगुणसे वर्जित स्निग्ध पुद्गलोंका रूक्षके साथ, और ऐसेही जघन्यगुणोंसे रहित रूक्ष पुद्गलोंका स्निग्धके साथ बन्ध होता है ऐसा आपने अभी कहा है । सो क्या तुल्यगुण अर्थात् समान गुणवाले पुद्गलोंका बन्ध सर्वथा नहीं होता ? । इसपर कहते हैं कि “न जघन्यगुणानाम्" अर्थात् “जघन्य गुणवालोंका बन्ध नहीं होता" इसका अधिकार करके यह अग्रिम सूत्र कहते हैं गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ३४॥ सूत्रार्थ-गुणकी समता होनेपर सदृश पुद्गलोंका बन्ध नहीं होता। भाष्यम्-गुणसाम्ये सति सदृशानां बन्धो न भवति । तद्यथा-तुल्यगुणस्निग्धस्य तुल्यगुणस्निग्धेन तुल्यगुणरूक्षस्य तुल्यगुणरूक्षेणेति ।। विशेषव्याख्या-जब स्निग्धोंका और रूक्षोंका गुण समान होता है तब स्निग्धोंका स्निग्धोंके साथ तथा रूक्षोंका रूक्षोंके साथ बन्ध नहीं होता । जैसे-समानगुणयुक्त स्निग्ध पदार्थका समान गुणवाले स्निग्ध पदार्थके साथ, तथा समान गुण रूक्ष पदार्थका समान गुण रूक्षके साथ बन्ध नहीं होता। अत्राह । सदृशग्रहणं किमपेक्षत इति । अत्रोच्यते । गुणवैषम्ये सदृशानां बन्धो भवतीति ।। अब कहते हैं कि इस ३४ वें सूत्रमें सदृशग्रहण किसकी अपेक्षा करता है, अर्थात् गुण वा पदार्थकी ? । इसपर कहते हैं कि गुणकी विषमतामें सदृश पदार्थोंकाभी बन्ध होता है । अर्थात् पहले स्निग्धका रूक्ष तथा रूक्षका स्निग्धके साथ बन्ध दिखलाया था. अब सदृशग्रहणसे यह तात्पर्य है कि गुणकी विषमतामें रूक्षोंका रूक्षके साथ तथा स्निग्धोंका स्निग्धके साथभी बन्ध होजाता है ॥ ३४॥ अत्राह । किमविशेषेण गुणवैषम्ये सदृशानां बन्धो भवतीति । अत्रोच्यते अब यहांपर प्रश्न करते हैं कि क्या अविशेष रूपसे गुणोंके वैषम्यमें बन्ध होता है अथवा इसका कोई विशेष नियम है ? । इसपर यह सूत्र कहते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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