________________
१
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्।
अणवः स्कन्धाश्च ॥ २५॥ सूत्रार्थ:-अणु तथा स्कन्ध ये दो भेद पुद्गलोंके हैं। भाष्यम्-उक्तं चइस विषयमें अन्यत्र कारिकाओंके द्वारा कहाभी है।
कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः ।
एकरसगन्धवर्णो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ इति । वह परमाणु कारण और अन्तिम सूक्ष्मतासहित तथा नित्य है। तथा एक रस, एक गन्ध और एकवर्णयुक्त, दो स्पर्शसहित, और कार्यलिङ्ग है, अर्थात् कार्यसे जाना जाता है । इस प्रकारसे परमाणुके लक्षण कहे हैं। तत्राणवोऽबद्धाः स्कन्धास्तु बद्धा एव ॥
अणु तथा स्कन्धोंमें परमाणु तो अबद्ध अर्थात् बन्धनरहित हैं, और स्कन्ध बद्ध हैं ॥ २५ ॥
अत्राह । कथं पुनरेतद्वैविध्यं भवतीति । अत्रोच्यते । स्कन्धास्तावत्
अब यहांपर कहते हैं कि पुद्गलोंके ये दो भेद कैसे होते हैं ? । इस लिये यह अग्रिम सूत्र कहते हैं । प्रथम स्कन्धोंके विषयमें कहते हैं
संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ २६ ॥ सूत्रार्थः-संघातसे, भेदसे तथा संघात-भेदसे स्कन्ध उत्पन्न होते हैं !
भाष्यम्-संघाताद्भेदात्संघातभेदादिति । एभ्यस्त्रिभ्यः कारणेभ्यः स्कन्धा उत्पद्यन्ते द्विप्रदेशादयः। तद्यथा-द्वयोः परमाण्वोः संघाताहिप्रदेशः । द्विप्रदेशस्याणोश्च संघातात्रिप्रदेशः। एवं सङ्ख्येयानामसङ्ख्येयानामनन्तानामनन्तानन्तानां च प्रदेशानां संघातात्तावत्प्रदेशाः ॥ एषामेव भेदाहिप्रदेशपर्यन्ताः ॥ एत एव संघातभेदाभ्यामेकसामायिकाभ्यां द्विप्रदेशादयः स्कन्धा उत्पद्यन्ते । अन्यस्य संघातेनान्यतो भेदेनेति ॥
विशेषव्याख्या-संघात आदि जो तीन कारण हैं उनसे द्विप्रदेश (दो प्रदेशोंवाले ) आदि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । जैसे—दो परमाणुओंके संघातसे द्विप्रदेश उत्पन्न होता है, तथा द्विप्रदेश और अणुके संघातसे त्रिप्रदेश उत्पन्न होता है । इस प्रकार सङ्खयेय, असवयेय, अनन्त और अनन्तानन्त प्रदेशोंके संघातसे उतनेही अर्थात् सङ्ख्येय, असङ्ख्येय, अनन्त तथा अनन्तानन्त प्रदेशवाले उत्पन्न होते हैं । और इन्ही संख्यात संख्यात अनन्त प्रदेशोंवाले स्कन्धोंके भेद करनेसे द्विप्रदेशपर्यन्त स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । और येही एक समयमें उत्पन्न संघात तथा भेदसे द्विप्रदेश आदि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। अन्यके संघात और अन्यके भेदसे ये स्कन्ध उत्पन्न होते हैं ॥ २६ ॥ अत्राह । अथ परमाणुः कथमुत्पद्यत इति । अत्रोच्यतेअब यहां कहते हैं कि परमाणु कैसे उत्पन्न होता है? । इस लिये यह सूत्र कहते हैं ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org