________________
१३०
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् गबन्ध ( पुरुषप्रयत्नसे उत्पन्न ), विश्रसा ( अर्थात् स्वतःसिद्ध वा परिपाकजन्य ) बन्ध आरै मिश्रबन्ध 'स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलोंके परस्पर स्पृष्ट होनेपर बन्ध होता है' ऐसा आगे इसी अध्यायके ( ३२ )वें सूत्रमें कहेंगे। सौक्ष्म्य दो प्रकारका है एक अन्तिम परमाणु आदि निष्ठ और दूसरा सापेक्ष । अन्तिम सौक्ष्म्य तो परमाणुओंमें होता है और दूसरा द्यणुक आदिमें संघात परिणामकी अपेक्षासे होता है । जैसे-आमलेसे वदर (बेर )में सूक्ष्मता है। यह संघातपरिणामके सापेक्ष होती है । और स्थौल्यभी दो प्रकारका होता है । एक अन्तिम
और दूसरा आपेक्षिक अर्थात् किसीकी अपेक्षासे । उनमें अन्तिम स्थौल्य (स्थूलत्व वा महत्व ) सर्वलोकव्यापी महास्कन्धमें होता है और द्वितीय स्थौल्य, जैसे-बदर (बेर ) आदिकी अपेक्षा आमले आदिमें । संस्थान ( अवयवरचनाविशेष ) अनेक प्रकारका होता है । जैसे-दीर्घ ह्रस्वसे अनित्थत्व (निरूपणके अयोग्य ) पर्यन्त होता है । भेद पांच प्रकारका है । जैसे-औत्कारिक (काष्ठादिकको आरा आदिसे चीरना), चौर्णिक (चूर्णके द्वारा उत्पन्न. जैसे-दाल आटा), खण्ड (जैसे घटके कपालादिक ), प्रसर (जैसे बादलके टुकड़े) तथा अनुतट और तम (प्रकाशविरोधी ), छाया (प्रकाशावरणनिमित्ता), आतप (सूर्य आदिसे होनेवाले उष्णरूप) तथा उद्योत ( चन्द्र आदिका प्रकाश) ये सब पुद्गलके परिणामसे उत्पन्न होते हैं । ये सब स्पर्शसे लेकर उद्योतपर्यन्त पुद्गलोंहीमें होते हैं । इस कारण पुद्गल तद्वान् अर्थात् इनसे युक्त कहलाते हैं।
अत्राह । किमर्थ स्पर्शादीनां शब्दादीनां च पृथक् सूत्रकरणमिति । अत्रोच्यते । स्पर्शादयः परमाणुषु स्कन्धेषु च परिणामजा एव भवन्तीति । शब्दादयस्तु स्कन्धेष्वेव भवन्त्यनेकनिमित्ताश्चेत्यतः पृथक्करणम् ।।
अब यहांपर प्रश्न करते हैं कि यदि स्पर्श रसादि तथा शब्दबन्धादि पुद्गलोंहीमें होते हैं तो स्पर्शादिक तथा शब्दादिकके लिये पृथक् २ सूत्र क्यों किया ? । अर्थात् स्पर्श रस गंध इत्यादि (२३) तथा शब्द-बन्ध इत्यादि ( २४ ) दो सूत्र क्यों किये ? एकही सूत्रसे कार्य चल जाता । अब इसका उत्तर कहते हैं कि स्पर्श रस आदि जो हैं वे परमाणु
ओंमें तथा स्कन्धोंमें स्वभावसेही होते हैं । और शब्द-बन्ध आदि तो स्कन्धोंहीमें होते हैं और अनेक निमित्तोंसे होते हैं, न कि केवल परिणामजन्य, इस लिये पृथक् २ सूत्र किये ॥ २४ ॥ त एते पुद्गलाः समासतो द्विविधा भवन्ति । तद्यथाये पुद्गल संक्षेपसे दो प्रकारके होते हैं । जैसे:
१ जिसका निरूपण न होसकै कि वह ऐसा वा इस प्रकारका है । २ अनुतट वह भेद है जो संतप्त लोहेको घनसे पीटनेसे स्फुलिंग निकलते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org