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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
विशेषव्याख्या - लोकाकाशके असङ्खयेय भाग आदिके विषे जीवोंका अवगाह होता है । यह जीवोंका अवगाह संपूर्ण लोकतक होता है ॥ १५ ॥
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अत्राह । को हेतुरसङ्घयेयभागादिषु जीवानामवगाहो भवतीति । अत्रोच्यतेअब यहां कहते हैं कि क्या कारण है कि लोकाकाशके असङ्खयेय विभागादिमें taar अवगाह होता है ? । अब इसपर कहते हैं
प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां प्रदीपवत् ॥ १६ ॥
सूत्रार्थ — दीपके प्रकाशके समान जीवों के प्रदेश संकोचविस्ताररूप होनेसे लोकके असङ्ख्येय आदि भागोंमें जीवोंका अवगाह होता है ।
भाष्यम् – जीवस्य हि प्रदेशानां संहारविसर्गाविष्टौ प्रदीपस्येव । तद्यथा – तैलवर्त्यग्न्युपादाप्रवृद्धः प्रदीप महतीमपि कूटागारशालां प्रकाशयत्यण्वीमपि, माणिकावृतः माणिकां द्रोणावृतो द्रोणमाढकावृतश्चाढकं प्रस्थावृतः प्रस्थं पाण्यावृतो पाणिमिति । एवमेव प्रदेशानां संहारविसर्गाभ्यां जीवो महान्तमणुं वा पञ्चविधं शरीरस्कन्धं धर्माधर्माकाशपुद्गलजीवप्रदेशसमुदायं व्याप्नोतीत्यवगाहत इत्यर्थः । धर्माधर्माकाशजीवानां परस्परेण पुद्गलेषु च वृत्तिर्न विरुध्यतेऽमूर्तत्वात् ॥
विशेषव्याख्या – प्रदीपके समान जीवके प्रदेशोंके संहार तथा विसर्ग इष्ट हैं । तैल, वर्तिका (बत्ती) तथा अग्निरूप उपादानकारणसे वृद्धिको प्राप्त प्रदीप (दीपक) छोटी तथा बड़ी शाला (गृह) को प्रकाशित करता है । जैसे- दीपक यदि माणिका ( पात्र ) से आच्छादित हो तो माणिकाको प्रकाशित करता है, द्रोण ( अन्न मापनेके पात्रविशेष ) से आच्छादित हो तो द्रोणको प्रकाशित करता है, ऐसेही आढकसे आवृत ( ढका हुआ ) होनेसे आढक (पात्रविशेष ) को, प्रस्थसे आवृत होने से प्रस्थ ( मापने के पात्र ) को और पाणिसे आवृत होनेसे पाणिको प्रकाशित करता है । इसी प्रकार यह जीवभी प्रदेशोंके संहार तथा विसर्ग अर्थात् संकोच और विस्तारसे महान् अथवा अणु पञ्चविध शरीरस्कन्ध धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल तथा जीवके प्रदेशसमूहको अवगाहन करता अर्थात् व्याप्त होता है । और धर्म, अधर्म, आकाश तथा जीवोंकी परस्परसे पुद्गलों में गगनागमनरूप वृत्तिका विरोध नहीं होता, क्योंकि धर्म आदि चारों अमूर्त हैं ॥ १६ ॥
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अत्राह । सति प्रदेशसंहारविसर्गसंभवे कस्मादसङ्ख्येयभागादिषु जीवानामवगाहो भवति नैकप्रदेशादिष्विति । अत्रोच्यते । संयोगत्वात्संसारिणां चरमशरीरत्रिभागहीनावगाहित्वाच्च सिद्धानामिति ॥
अब कहते हैं कि प्रदेशोंके संहार तथा प्रसर्पणके स्वभावका संभव होनेसे असङ्ख्येय भागादिकमें जीवोंका अवगाह क्यों होता है ? और एक प्रदेशादिमें क्यों नहीं होता ? इसपर कहते हैं कि, संसारी जीवोंको तो योग ( शरीरवाङ्मनोयोग ) सहित होनेसे; और
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