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- सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
१२५ सिद्धोंको अन्तिम शरीरसे त्रिभागहीन होनेसे असङ्ख्य भाग आदिमें अवगाह (व्याप्ति) होती है।
अत्राह । उक्तं भवता धर्मादीनस्तिकायान् परस्ताल्लक्षणतो वक्ष्याम इति तत्किमेषां लक्षणमिति । अत्रोच्यते___ अब कहते हैं कि आपने यह कहा है, कि धर्मास्तिकाय आदिको लक्षणपूर्वक हम आगे कहेंगे (अ. ५ सू. १)सो इनके क्या लक्षण हैं ? । अब इसके उत्तरमें अग्रिम सूत्र कहते हैं
गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः ॥ १७॥ सूत्रार्थ—गत्युपग्रह और स्थित्युपग्रह यह धर्म तथा अधर्मका उपकार है । भाष्यम्-गतिमतां गतेः स्थितिमतां च स्थितेरुपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारो यथासङ्घयम् । उपग्रहो निमित्तमपेक्षा कारणं हेतुरित्यनान्तरम् । उपकारः प्रयोजनं गुणोऽर्थ इत्यनर्थान्तरम् ॥
विशेषव्याख्या गतिमान् जो (जीव पुद्गल) पदार्थ हैं उनकी तो गतिके और जो स्थितिमान् (ठहरे हुए जीव पुद्गल) हैं, उनकी स्थितिके उपग्रह अर्थात् सहायरूप होना यह धर्म तथा अधर्मका जीव और पुद्गलोंके ऊपर उपकार है । यहांपर गति उपग्रह,
और स्थिति उपग्रह इनका तथा धर्म और अधर्मका यथासङ्ख्य है । अर्थात् गतिकारणता धर्मका और स्थितिकारणता अधर्मका लक्षण है । उपग्रह, निमित्त, अपेक्षा, कारण, और हेतु ये सब समानार्थक हैं । और ऐसेही उपकार, प्रयोजन, गुण तथा अर्थ ये सबभी एकार्थबोधक हैं ॥ १७ ॥
आकाशस्यावगाहः ॥१८॥ सूत्रार्थ-सम्पूर्ण द्रव्योंको अवगाह देना यह आकाशका उपकार है। भाष्यम्-अवगाहिनां धर्माधर्मपुद्गलजीवानामवगाह आकाशस्योपकारः । धर्माधर्मयोरन्तःप्रवेशसंभवेन पुद्गलजीवानां संयोगविभागैश्चेति ॥
विशेषव्याख्या-अवगाही अर्थात् रहनेवाले पदार्थों अर्थात् धर्म, अधर्म, पुद्गल और जीव इन सबको अवगाह देना यह आकाशका धर्म, अधर्म, पुद्गल और जीवोंके ऊपर उपकार है । इनमें धर्म और अधर्मका आभ्यन्तर प्रवेशके संभवसे उपकार करता है, और पुद्गल तथा जीवोंका संयोग तथा विभागोंसे उपकार करता है । तात्पर्य यह है कि धर्म, अधर्म, पुद्गल और जीवोंको अवकाश वा अवगाहदानरूपसे तो उपकारक आकाशही है; किन्तु धर्म अधर्मको प्रत्येकमें अन्तःप्रवेशके संभवसे और पुद्गल तथा जीवोंका संयोग तथा विभागोंसेभी उपकार करता है ॥ १८ ॥
शरीरवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ १९ ॥
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