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________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । ११९ शर्कराप्रभामें परा स्थिति तीन सागरोपम है वह वालुकाप्रभामें जघन्या स्थिति है । इसी प्रकार शेष सब भूमियों में भी समझ लेना चाहिये । तमः प्रभाभूमिमें बावीस (२२) सागरोपम परा स्थिति है वह महातमः प्रभामें जघन्या अर्थात् अपरा स्थिति है ॥ ४३ ॥ दश वर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ४४ ॥ भाष्यम् – प्रथमायां भूमौ नारकाणां दश वर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः ॥ विशेषव्याख्या- - प्रथम भूमि अर्थात् रत्नप्रभा भूमिमें नारकजीवों की अपरा स्थिति दशसहस्र (१००००) वर्ष है । भवनेषु च ॥ ४५ ॥ भाष्यम् – भवनवासिनां च दश वर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः ॥ विशेषव्याख्या—भवनवासी देवोंकी भी जघन्या स्थिति दश सहस्र वर्ष है । व्यन्तराणां च ॥ ४६ ॥ भाष्यम् – व्यन्तराणां च देवानां दश वर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः ।। विशेषव्याख्या - व्यन्तरदेवोंकी भी जघन्या स्थिति दश सहस्र वर्ष है । परा पल्योपमम् ॥ ४७ ॥ भाष्यम् - व्यन्तराणां परा स्थितिः पल्योपमं भवति ॥ विशेषव्याख्या - व्यन्तरदेवों की परा ( सर्वोत्कृष्टा ) स्थिति पल्योपम है ज्योतिष्काणामधिकम् ॥ ४८ ॥ भाष्यम् - ज्योतिष्काणां देवानामधिकं पल्योपमं परा स्थितिर्भवति || विशेषव्याख्या– ज्योतिष्कदेवोंकी परा स्थिति कुछ अधिक पल्योपम है । ग्रहाणामेकम् ॥ ४९ ॥ भाष्यम् – ग्रहाणामेकं पल्योपमं स्थितिर्भवति ॥ विशेषव्याख्या — ग्रहों की परा स्थिति एकही पल्योपम होती है ॥ ४९ ॥ नक्षत्राणामर्धम् ॥ ५० ॥ भाष्यम् - नक्षत्राणां देवानां पल्योपमार्धं परा स्थितिर्भवति ॥ विशेषव्याख्या–नक्षत्रोंकी अर्ध अर्थात् आधा पल्योपम परा स्थिति है । तारकाणां चतुर्भागः ॥ ५१ ॥ भाष्यम् - तारकाणां च पल्योपमचतुर्भागः परा स्थितिः ।। विशेषव्याख्या–ताराओंकी परा स्थिति पत्योपमका चतुर्थ भाग है । जघन्या त्वष्टभागः ॥ ५२ ॥ भाष्यम् - तारकाणां तु जघन्या स्थितिः पल्योपमाष्टभागः ॥ विशेषव्याख्या — और ताराओंकी जघन्या स्थिति पल्योपमका अष्टम भाग है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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