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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
चतुर्भागः शेषाणाम् ॥ ५३॥ भाष्यम्-तारकाभ्यः शेषाणां ज्योतिष्काणां चतुर्भागः पल्योपमस्यापरा स्थितिः ॥
विशेषव्याख्या-ताराओंसे शेष जो ज्योतिष्क देव हैं उनकी अपरा स्थिति पल्योपमका चतुर्थ भाग है।
इति तत्त्वार्थाधिगमाख्येऽर्हत्प्रवचनसङ्ग्रहे देवगतिप्रदर्शनो नामाचार्योपाधिधारिठाकुरप्रसादशर्मप्रणीत-भाषाटीका
समलङ्कृतश्चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः ।।
अथ पञ्चमोऽध्यायः।
उक्ता जीवाः । अजीवान्वक्ष्यामः ।। जीवपदार्थका निरूपण करचुके अब अजीव पदार्थ कहते हैं ।
___ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः॥१॥ सूत्रार्थ-धर्म, अधर्म, आकाश तथा पुद्गल अजीवकाय हैं । भाष्यम्-धर्मास्तिकायोऽधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकायः पुद्गलास्तिकाय इत्यजीवकायाः । तान् लक्षणतः परस्ताद्वक्ष्यामः । कायग्रहणं प्रदेशावयवबहुत्वार्थमद्धासमयप्रतिषेधार्थ च ॥
विशेषव्याख्या:-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, तथा पुद्गलास्तिकाय; ये चारों अजीवकाय हैं । इनको लक्षणपूर्वक आगे कहेंगे । इस सूत्रमें कायशब्दका ग्रहण प्रदेश तथा अवयवोंके बहुत्व बोधनके अर्थ किया है, अर्थात् इनके प्रदेश अवयव बहुत हैं, इस बातके जतानेके लिये कायग्रहण किया है । और अद्धासमयमें कायत्व नहीं है यह जतानेके लियेभी कायग्रहण है ॥ १॥
द्रव्याणि जीवाश्च ॥२॥ सूत्रार्थ-धर्म आदि चार अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और संपूर्ण जीव ये पांच द्रव्य हैं।
भाष्यम्-एते धर्मादयश्चत्वारो प्राणिनश्च पञ्च द्रव्याणि च भवन्तीति । उक्तं हि “मतिश्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य” इति ॥
विशेषव्याख्याः -धर्म आदि चार और पांचवां जीव इन पांचोंकी द्रव्य संज्ञा है । कहाभी है—“मति तथा श्रुतज्ञानका विषयनिबन्ध द्रव्योंके असर्व पर्यायों और सब द्रव्योंमें है; और केवल ज्ञानका संपूर्ण द्रव्य तथा संपूर्ण पर्यायमें विषयनिबंध है । अर्थात् मति और श्रुतज्ञानसे संपूर्ण द्रव्य तो जाने जाते हैं परन्तु सब पर्यायसहित नहीं; और केवल ज्ञानसे संपूर्ण पर्यायसहित सब द्रव्य जाने जाते हैं." यह विषय प्रथम कहचुके हैं (अ. १ सू. २७,३०) ॥ २ ॥
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