________________
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
स्थितिः॥ २९॥ भाष्यम्-स्थितिरित्यत ऊर्ध्व वक्ष्यते ॥ विशेषव्याख्या-अब इसके आगे देवोंकी स्थितिके विषयमें कहेंगे।
भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यर्धम् ॥ ३० ॥ सूत्रार्थ-भवनवासी देवोंमें जो दक्षिणार्धाधिपति हैं उनकी अध्यर्ध एक पल्योपम स्थिति है।
भाष्यम्-भवनेषु तावद्भवनवासिनां दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यधै परा स्थितिः । द्वयोर्द्वयोर्यथोक्तयोर्भवनवासीन्द्रयोः पूर्वो दक्षिणार्धाधिपतिः पर उत्तरार्धाधिपतिः ॥
विशेषव्याख्या-दक्षिणार्धाधिपति जो देव हैं उनकी अर्ध अधिक (सार्द्ध) एक पल्योपम अर्थात् डेढ़ पल्योपम परा स्थिति है । यथोक्त दो दो भवनवासी इन्द्रोंमेंसे पूर्व २ का इन्द्र दक्षिणार्धाधिपति कहा जाता है, और दूसरा उत्तरार्धाधिपति है।
शेषाणां पादोने ॥ ३१ ॥ सूत्रार्थ-भवनवासियोंमें जो शेष अधिपति हैं उनकी पाद ऊन अर्थात् चौथाई पल्य कम दो पल्योपम परा स्थिति है। ___ भाष्यम्-शेषाणां भवनवासिष्वधिपतीनां द्वे पल्योपमे पादोने परा स्थितिः । के च शेषा उत्तरार्धाधिपतय इति ॥
विशेषव्याख्या-दक्षिणार्धाधिपतियोंकी तो डेढ़ पल्योपम परा स्थिति कहचुके, अब उनसे शेष अर्थात् जो उत्तरार्धाधिपति हैं उनकी एक पादसे ऊन अर्थात् पौने दो पल्योपम परा स्थिति है। यहां शेष पदसे उत्तरार्धाधिपतियोंसे तात्पर्य है।
____असुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च ॥३२॥ भाष्यम्-असुरेन्द्रयोस्तु दक्षिणार्धाधिपत्युत्तरार्धाधिपत्योः सागरोपममधिकं च यथासङ्घयं परा स्थितिर्भवति ॥
विशेषव्याख्या-असुरेन्द्र जो दक्षिणार्धाधिपति तथा उत्तरार्धाधिपति हैं उनकी सागरोपम तथा कुछ अधिक परा स्थिति है। यहांपर दक्षिणार्धाधिपति तथा उत्तरार्धाधिपति
और सागरोपम तथा अधिकका यथासंख्य है। अर्थात् असुरेन्द्रोंमें दक्षिणार्धाधिपतिकी सागरोपम परा स्थिति, और उत्तरार्धाधिपतिकी कुछ अधिक सागरोपम परा स्थिति है।
सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥ ३३ ॥ सूत्रार्थ-सौधर्मादिकोंमे यथाक्रमसे परा स्थिति कहेंगे। भाष्यम्-सौधर्ममादिं कृत्वा यथाक्रममित ऊवं परा स्थितिर्वक्ष्यते ॥ विशेषव्याख्या-यहांसे आगे सौधर्म आदिक देवोंकी परा स्थिति यथाक्रमसे कहेंगे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org