________________
११४
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् (नैर्ऋत्यकोण )में गर्दतोय, पश्चिममें तुषित, पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण )में अव्याबाध, और उत्तरमें मरुत् अथवा अरिष्ट देव रहते हैं ॥ २६ ॥
विजयादिषु विचरमाः ॥ २७॥ सूत्रार्थ-विजयादिक विमानोंके देवोंको केवल दो जन्म सिद्धाऽवस्था प्राप्त होनेमें शेष रहते हैं। __ भाष्यम्-विजयादिष्वनुत्तरेषु विमानेषु देवा द्विचरमा भवन्ति । द्विचरमा इति तत
युताः परं द्विर्जनित्वा सिध्यन्तीति । सकृत्सर्वार्थसिद्धमहाविमानवासिनः । शेषास्तु भजनीयाः॥
विशेषव्याख्या-विजय आदि जो पञ्च अनुत्तर विमान हैं उन विमानोंके निवासी देवोंके दोही जन्म अन्तके रहजाते हैं । द्विचरम इसका यह तात्पर्य है कि विजय आदि विमानोंकी स्थितिका काल भोगकर उससे जब च्युत हों तो पुनः संसारमें दो जन्म धारण करके मोक्षरूप सिद्धिको प्राप्त होते हैं । और सर्वार्थसिद्ध नाम महाविमानके निवासी देवता एकही बार संसारमें जन्म लेकर उसी जन्ममें सिद्ध हो जाते हैं । और इनसे शेष जो हैं उनको सिद्धि कई जन्ममें वा एक दो चार आदि जन्ममें प्राप्य है। __ अत्राह । उक्तं भवता जीवस्यौदयिकेषु भावेषु तिर्यग्योनिगतिरिति तथा स्थितौ तिर्यग्योनीनां चेति । आस्रवेषु च माया तैर्यग्योनस्येति । तत्के तिर्यग्योनय इति । अत्रोच्यते__ अब कहते हैं कि आपने औदयिक भावों में कहा है कि "तिर्यग्योनि" गति होती है (अ. २ सू. ६) । तथा उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिमें तिर्यग्योनिवालोंकी स्थिति बतलाई है (अ. ३ सू. २६) । आस्रवमें कहा है कि माया तिर्यग्योनि बन्धके आस्रवका कारण होती है (अ. ६ सू. १७) । इत्यादि स्थानोंमें अनेकबार तिर्यग्योनिकी चर्चा की है । सो तिर्यग्योनिवाले कौन हैं ? । इसके उत्तरमें अग्रिम सूत्र कहते हैं
औपपातिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ॥२८॥ सूत्रार्थ-उपपातरूप जन्मसे उत्पन्न होनेवाले तथा मनुष्योंसे जो शेष अर्थात् भिन्न हैं वे सब तिर्यग्योनिके जीव हैं।
भाष्यम् –औपपातिकेभ्यश्च नारकदेवेभ्यो मनुष्येभ्यश्च यथोक्तेभ्यः शेषा एकेन्द्रियादयस्तिर्यग्योनयो भवन्ति ॥
विशेषव्याख्याः –उपपातरूप जन्मसे जो उत्पन्न होनेवाले देव तथा नारकी जीव और मनुष्य इनसे जो शेष एकेन्द्रियादिक जीव हैं वे तिर्यग्योनि जीव कहे जाते हैं । अत्राह । तिर्यग्योनिमनुष्याणां स्थितिरुक्ता । अथ देवानां का स्थितिरिति । अत्रोच्यते
अब यहां कहते हैं कि तिर्यग्योनि तथा मनुष्योंकी स्थिति तो आपने कही । अब Jan देवोंकी स्थिति कितने कालपर्यन्त होती है, इस लिये यह अग्रिम सूत्र कहते हैं .amentorary.org