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___ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । जैसे विमान तथा सिद्धिक्षेत्रकी आकाशप्रदेशमें निरालम्बस्थिति होनेंमें लोककी स्थितिही हेतु (कारण) है । लोकस्थिति, लोकानुभाव, लोकस्वभाव, जगद्धर्म और अनादि परिणामसन्तति, इन सबका एकही तात्पर्य है। सब देवेन्द्र, और ग्रैवेयकके सब देव भगवान् परमर्षि अर्हत्के जन्म, अभिषेक, निष्क्रमण, ज्ञानोत्पत्ति और महासमवसरणमें अथवा निर्वाणकालमें चाहै आसीन (बैठे) हों, सोते हों, वा खड़े हों अथवा अन्य किसी दशामें हों, सहसा अर्थात् अकस्मात् शीघ्रही आसन, शयन, तथा स्थानके आश्रयसहित चलायमान होते हैं। तात्पर्य यह कि भगवान्के जन्मादि पंच कल्याणोंके समयमें इनके आसनशयनादिके आश्रय कम्पायमान होते हैं । अथवा शुभ कर्मोंके उदयसे, वा लोकके प्रभावसेही चलायमान होते हैं । उसके पश्चात् उपयोग अर्थात् ज्ञान उत्पन्न होनेसे भगवान्की अन्यके सदृश अर्थात् अन्य साधारण जनोंको अलभ्य तीर्थकर नामकर्मसे उत्पन्न विभूति (ऐश्वर्य)को अवधिज्ञानसे देखकर संवेग (भक्तिसहित वैराग्य) उत्पन्न होनेसे सत् धर्मके बहुमानसे कोई देव तो आकर भगवान्के चरणमूलके निकट स्तुति, वन्दना, उपासना तथा हितापदेशके श्रवणोंसे अपने आत्माका अनुग्रह प्राप्त करते हैं । और कोई वहां ही खड़े होकर प्रत्युपस्थापन अर्थात् हाथ जोड़के दण्डवत् प्रणाम, नमस्कार और भेट आदिके समर्पणसे परमभक्ति आदि सम्पन्न होकर सद्धर्मके अनुरागसे विकसितनेत्रवदनयुक्त भगवान्की अनेक प्रकारसे पूजा करते हैं । ___ अत्राह । त्रयाणां देवनिकायानां लेश्यानियमोऽभिहितः । अथ वैमानिकानां केषां का लेश्या इति । अत्रोच्यते
अब यहां कहते हैं कि भवन, व्यन्तर तथा ज्योतिष्क इन तीन निकायोंके लेश्याका नियम तो आपने कहा । अब वैमानिक देवोंमेंसे किनकी कौनसी लेश्या होती हैं इसपर कहते हैं
पीतपद्मशुक्ललेश्या हि विशेषेषु ॥ २३ ॥ सूत्रार्थ:-सौधर्मादि कल्पोंमें प्रथम दो कल्पोंमें तो पीतलेश्या है, और उसके आगे तीन कल्पके देवोंमें पद्मलेश्या है, और आगे शेष देवोंमें शुक्ललेश्या है । __ भाष्यम्-उपर्युपरि वैमानिकाः सौधर्मादिषु द्वयोनिषु शेषेषु च पीतपद्मशुक्ललेश्या भवन्ति यथासङ्घयम् । द्वयोः पीतलेश्याः सौधर्मेशानयोः । त्रिषु पद्मलेश्याः सानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकेषु । शेषेषु लान्तकादिष्वासर्वार्थसिद्धाच्छुक्ललेश्याः । उपर्युपरि तु विशुद्धतरेत्युक्तम् ॥
विशेषव्याख्या-चतुर्थनिकायके देवोंमें लेश्याकी यह अवस्था है कि, आरम्भके दो कल्पोंमें तो पीतलेश्या है, उसके ऊपरके तीन कल्पोंमें पद्मलेश्या है । और उनके ऊपरके शेष देवोंमें शुक्र लेश्या है । यहांपर पीत, पद्म, शुक्ल लेश्याका और द्वित्रिशेषका
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