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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
भाष्यम् — उपर्युपरि च यथानिर्देशं वेदितव्याः । नैकक्षेत्रे नापि तिर्यगधो वेति ॥
विशेषव्याख्या– उपरि उपरि यथानिर्देश समझना चाहिये । अर्थात् जिस क्रमसे वैमानिकदेव सूत्रमें निर्दिष्ट ( दर्शाये गये ) हैं उसी क्रमसे वे ऊपर २ एकके ऊपर दूसरे स्थित हैं। न तो वैमानिक देव एक क्षेत्र में हैं और न तिर्यग् भागमें हैं और न अधोभाग में हैं; किन्तु ऊपर २ स्थित हैं ।
सौधर्मेशान सानत्कुमारमाहेन्द्र ब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्रसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धे च ॥ २० ॥
सूत्रार्थः - सौधर्म आदि जो विमान हैं, उनमें चतुर्थ निकाय वैमानिक देव होते हैं, और वे ऊपर २ होते हैं ऐसा कभी चुके हैं ।
भाष्यम् – एतेषु सौधर्मादिषु कल्पविमानेषु वैमानिका देवा भवन्ति । तद्यथा-से -सौधर्मस्य कल्पस्योपर्यैशानः कल्पः । ऐशानस्योपरि सानत्कुमारः । सानत्कुमारस्योपरि माहेन्द्र इत्येवमासर्वार्थसिद्धादिति । सुधर्मा नाम शक्रस्य देवेन्द्रस्य सभा । सा तस्मिन्नस्तीति सौधर्मः कल्पः । ईशानस्य देवराजस्य निवास ऐशान इत्येवमिन्द्राणां निवासयोग्याभिख्याः सर्वे कल्पाः ॥ ग्रैवेयास्तु लोकपुरुषस्य ग्रीवाप्रदेशविनिविष्टा ग्रीवाभरणभूता ग्रैवा ग्रीव्या ग्रैवेया ग्रैवेयका इति ॥ अनुत्तराः पञ्च देवनामान एव । विजिता अभ्युदयविघ्नहेतव एभिरिति विजयवैजयन्तजयन्ताः । तैरेव विघ्नहेतुभिर्न पराजिता अपराजिताः । सर्वेष्वभ्युदयार्थेषु सिद्धाः सर्वार्थैश्च सिद्धाः सर्वे चैषामभ्युदयार्थाः सिद्धा इति सर्वार्थसिद्धाः । विजितप्रायाणि वा कर्माण्येभिरुपस्थितभद्राः परीषहैरपराजिताः सर्वार्थेषु सिद्धाः सिद्धप्रायोत्तमार्था इति, विजयादय इति ॥
विशेषव्याख्या - जिनके विषय में उपरि उपरि स्थिति कही गई है इन सौधर्मादिकल्पविमानोंमें रहनेवाले ये वैमानिक देव हैं । जैसे- प्रथमसौधर्मकल्प है, उसके ऊपर ऐशाI नकल्प है । ऐशानके ऊपर सानत्कुमारकल्प है । और सानत्कुमारकल्पके ऊपर माहेन्द्रकल्प है। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धपर्यन्त एकके ऊपर दूसरे विमान हैं । सुधर्मानामिका शक्र अर्थात् इन्द्रजीकी सभा है। वह सुधर्मानामिका सभा जिस स्वर्गमें है उसको सौधर्मकल्प कहते हैं । इसी रीति से ईशान जो देवराज वा इन्द्र हैं उनका जो निवासस्थान है वह ऐशानकल्प है ऐसेही सब इन्द्रोंके निवासयोग्य अन्वर्थ ( सार्थक ) नामवाले ये सब कल्प हैं । और ग्रैवेय तो लोकपुरुष (पुरुषाकाररूप लोक ) के ग्रीवाप्रदेशमें अर्थात् गलस्थानमें निविष्ट ( स्थित ) हैं, अर्थात् ग्रीवाके आभूषणके समान हैं; ग्रैव, ग्रीव्य, ग्रैवेय, तथा ग्रैवेयक ये सब एकार्थवाचक हैं | अनुत्तर पंचदेवोंके नाम हैं । और जिन्होंनें अभ्युदयमें होनेवाले विघ्नोंको जीत लिया है; वे विजय, वैजयन्त और जयन्त हैं । और उन्ही विघ्नोंके हेतुओंसे जो पराजित नहीं हुए, वे अपराजित हैं । तथा संपूर्ण अभ्युदयके अर्थोंमें जो सिद्ध हैं वा संपूर्ण
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