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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् वरणयानवाहनाः कुमारवच्चोल्बणरागाः क्रीडनपराश्चेत्यतः कुमारा इत्युच्यन्ते । असुरकुमारावासेष्वसुरकुमाराः प्रतिवसन्ति शेषास्तु भवनेषु । महामन्दरस्य दक्षिणोत्तरयोर्दिग्विभागयोर्बह्वीषु योजनशतसहस्रकोटीकोटीष्वावासा भवनानि च दक्षिणार्धाधिपतीनामुत्तरार्धाधिपतीनां च यथास्वं भवन्ति । तत्र भवनानि रत्नप्रभायां बाहल्यार्धमवगाह्य मध्ये भवन्ति । भवनेषु वसन्तीति भवनवासिनः ॥ विशेषव्याख्या-चारों निकायोंमेंसे प्रथम निकाय भवनवासी हैं । उनके भेद ये हैं। यथा; असुरकुमार १, नागकुमार २, विद्युत्कुमार ३, सुपर्णकुमार ४, अग्निकुमार ५, वातकुमार ६, स्तनितकुमार ७, उदधिकुमार ८, द्वीपकुमार ९ और दिक्कुमार १० । ये सब कुमारोंके समान रमणीयदर्शन, सुकुमार, मृदु, मधुर तथा ललित गतिवाले, शृंगार सहित सुन्दर रूप विक्रियायुक्त होते हैं । और कुमारोंके तुल्य उद्धत रूप, वेष, भाषा, आभरण, अस्त्रशस्त्रादि प्रहरण, वस्त्र तथा यान वाहनादि युक्त होते हैं । और कुमारोंके ही समान इनका व्यक्त अर्थात् स्पष्टराग क्रीड़ामें तत्पर रहता है; अतएव इन्हें कुमार कहते हैं । इनमें असुरकुमार, असुरकुमारोंके आवासमें रहते हैं, और शेष भवनोंमें निवास करते हैं। महामन्दरके दक्षिण और उत्तर दिग्विभागोंमें अनेक लाखयोजन कोटी कोटीयोंमें असुरकुमारोंके आवास हैं, और भवन भी दक्षिणार्धाधिपतियोंके और उत्तरार्धाधिपतियोंके यथास्वं हैं । वहां रत्नप्रभामें वहलभागके अर्ध मध्यमें प्रवेशकरके मध्यमें भवन हैं । भवनोंमें जो रहते हैं, उन्हें भवनवासी कहते हैं । भवप्रत्ययाश्चैषामिमा नामकर्मनियमात्स्वजातिविशेषनियता विक्रिया भवन्ति । तद्यथा । गम्भीराः श्रीमन्तः काला महाकाया रत्नोत्कटमुकुटभास्वराश्चूडामणिचिह्ना असुरकुमारा भवन्ति । शिरोमुखेष्वधिकप्रतिरूपाः कृष्णश्यामा मृदुललितगतयः शिरस्सु फणिचिह्ना नागकुमाराः । स्निग्धा भ्राजिष्णवोऽवदाता वज्रचिह्ना विद्युत्कुमाराः । अधिकरूपग्रीवोरस्काः श्यामावदाता गरुडचिह्नाः सुपर्णकुमाराः । मानोन्मानप्रमाणयुक्ता भास्वन्तोऽवदाता घटचिह्ना अग्निकुमारा भवन्ति । स्थिरपीनवृत्तगात्रा निमग्नोदरा अश्वचिह्ना अवदाता वातकुमाराः । स्निग्धाः स्निग्धगम्भीरानुनादमहास्वनाः कृष्णा वर्धमानचिह्नाः स्तनितकुमाराः । ऊरुकटिष्वधिकप्रतिरूपाः कृष्णश्यामा मकरचिह्ना । उदधिकुमाराः। उरःस्कन्धबाह्वग्रहस्तेष्वधिकप्रतिरूपाः श्यामावदाताः सिंहचिह्ना द्वीपकुमाराः । जङ्घाग्रपादेष्वधिकप्रतिरूपाः श्यामा हस्तिचिह्ना दिक्कुमाराः । सर्वे विविधवस्त्राभरणप्रहरणावरणा भवन्तीति ॥ भवप्रत्ययसे अर्थात् देवयोनिमें जन्म लेनेके कारणसे तथा नामकर्मके नियमसे निज जाति विशेषमें नियत ऐसी विक्रिया इन देवोंके होती हैं । सो इस प्रकार कि,-गंभीर, श्रीमन्त अर्थात् शोभादि ऐश्वर्ययुक्त, काले, महाकाय, रत्नजटित मुकुटोंसे प्रकाशशील चूडामणिसे चिह्नित असुरकुमार होते हैं । शिर और मुखोंमें प्रतिरूप कृष्ण, श्याम, मृदु तथा ललित गतिवाले शिरमें नागसे चिह्नित नागकुमार होते हैं। चिक्कण, प्रकाशशील, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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