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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
८९ वीकायस्य परा द्वादशवर्षसहस्राणि । खरपृथिवीकायस्य द्वाविंशतिः। अप्कायस्य सप्त । वायुकायस्य त्रीणि । तेजःकायस्य त्रीणि रात्रिंदिनानि । वनस्पतिकायस्य दशवर्षसहस्राणि । एषां कायस्थितिरसङ्खयेया अवसर्पिण्युत्सर्पिण्यो वनस्पतिकायस्यानन्ताः। द्वीन्द्रियाणां भवस्थितिर्द्वादशवर्षाणि । त्रीन्द्रियाणामेकोनपञ्चाशद्रात्रिंदिनानि । चतुरिन्द्रियाणां षण्मासाः। एषां कायस्थितिः सङ्खयेयानि वर्षसहस्राणि । पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिजाः पञ्चविधाः । तद्यथा। मत्स्या उरगाः परिसर्पाः पक्षिणश्चतुष्पदा इति । तत्र मत्स्यानामुरगाणां भुजगानां च पूर्वकोट्येव पक्षिणां पल्योपमासङ्खयेयभागश्चतुष्पदानां त्रीणि पल्योपमानि गर्भजानां स्थितिः । तत्र मत्स्यानां भवस्थितिः पूर्वकोटित्रिपञ्चाशदुरगाणां द्विचत्वारिंशद्भुजगानां द्विसप्ततिः पक्षिणां स्थलचराणां चतुरशीतिवर्षसहस्राणि सम्मूर्छिनानां भवस्थितिः । एषां कायस्थितिः सप्ताष्टौ भवग्रहणानि । सर्वेषां मनुष्यतिर्यग्योनिजानां कायस्थितिरप्यपरान्तर्मुहूतैवेति ॥
इति तत्त्वार्थाधिगमे लोकप्रज्ञप्तिामा तृतीयोध्यायः समाप्तः ॥ __ और मनुष्य तथा तिर्यग्योनिवालोंकी स्थितिके पुनः दो भेद होते हैं, एक भवस्थिति दूसरी कायस्थिति । सो मनुष्योंकी परा तथा अपरा भवस्थिति पूर्वोक्त रीतिसे ही होती है। जैसे परा भवस्थिति त्रिपल्योपम होती है, अपरा भवस्थिति अन्तर्मुहूर्तकाल पर्यन्त होती है । और कायस्थिति जो परा है, वह सात व आठ भवग्रहण पर्यन्त रहती है।
और तिर्यग्योनिजोंकी समास व समृष्टिरूपसे परापर भवस्थिति पूर्वोक्त रूपसे है । और पृथक् २ रूपसे तो शुद्ध पृथिवीकायकी परास्थिति बारहहजार वर्ष पर्यन्त है, और खर पृथिवीकायकी परास्थिति बावीसहजार वर्ष पर्यन्त है । तथा अप्कायकी सात, वायुकायकी तीन तथा तैजसकायकी तीन रात दिनकी स्थिति है । और वनस्पतिकायकी दशहजार वर्ष है । तथा इनकी कायस्थिति भी असंखेय है । और वनस्पतिकायकी अनन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी हैं । दो इन्द्रियवालोंकी भवस्थिति बारहवर्ष पर्यन्त है । तीन इन्द्रियवालोंकी एक कम पचास अर्थात् उनचास रातदिन है । चार इन्द्रियवालोंकी छह महिना है, और इनकी कायस्थिति संख्येय सहस्रवर्ष पर्यन्त है। पांच इन्द्रियवाले तिर्यग्योनिजोंके पांच भेद हैं, यथा; मत्स्य, उरग, परिसर्प ( चारों
ओर फिसलके चलनेवाले ), पक्षी और चतुष्पद (चौपाये ) । इनमेंसे मत्स्य, उरग और भुजगोंकी एकपूर्वकोटि ही स्थिति है । पक्षियोंकी पल्योपम असंख्येयभाग, और गर्भज चतुष्पदोंकी तीन पल्योपम स्थिति है। उनमें मत्स्योंकी भवस्थिति पूर्वकोटि है, उरगोंकी तिरपन, भुजगोंकी व्यालीस, पक्षियोंकी बहत्तर है । और स्थलचारी संमूर्छनजन्मवालोंकी चौरासी सहस्र वर्ष भवस्थिति है। और इन सबकी कायस्थिति सात वा आठ भवग्रहण पर्यन्त है । और सम्पूर्ण मनुष्य तथा तिर्यग्योनिजोंकी अपरा कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त ही है। इति द्विवेद्युपनामकाचार्य्यपदवीधारिठाकुरप्रसादशर्मविरचितभाषाटीकासमलते
तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्ये तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥
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